शनिवार, 5 नवंबर 2011

पेट्ोल के दामो मे एक बार फिर बढोतरी -जनता मे भारी आक्रोश

 
पेट्ोल के दामों में एक बार फिर बढोतरी ने जनता एवं राजनीतिक दलो मे  आग लगा दी है जनता सडको पर है तो राजनीतिक दल इस बहाने यूपीए सरकार को धाराशायी करने मे जुट गए है । यूपीए के घटक तृणमूल कांग्रेस ने तो सरकार से अपना समर्थन वापस लेने तक की बात कर दी है । अभी पिछले महिने ही पेट्ोल के दामो में 3 रूपये 14 पैसे प्रति लीटर की बढोतरी की गई थी जिससे देश मे पेट्ोल के दाम 70 रू से 73 रू प्रति लीटर तक पहुंच गए थे । अब फिर 1 रू 82 पैसे प्रति लीटर की बढोतरी कर दी गर्इ्र है । जिससे पेट्ोल 72 से 74 रूपये प्रति लीटर तर पहुंच गया है ।

पेट्ोल के दामो मे बढोतरी का जो कारण तथा तर्क  बताया गया है वह यह है कि अन्तर्राष्टी्य बाजार में रूपये की कीमत घट गई है  सितम्बर 2011 में  एक डालर  के बदले भारतीय 47 रू 66 पैसे देने पडते थे जबकि अब एक डालर के बदले 49 रू 20 पैसे चुकाने पड रहे है अर्थात् एक डालर पर एक रू 56 पेसे ज्यादा भुगतान करना पड रहा है इस कारण तेल कम्पनियों को घाटा हो रहा था अतः पेट्ोल के दामों में सिर्फ एक रू 82 पैसे की ही बढोतरी की गई है । यहां यह उल्लेखनीय है कि तेल के दामो का भुगतान डालर मे किया जाता है । अन्तर्राष्ट्ीय बाजार में तेल के भाव अभी भी 110 डालर प्रति बैरल ही है उसके दामों में बढोतरी नही हुई है लेकिन भारतीय रूपये का अवमूल्यन होने के कारण तेल कम्पनियों को ज्यादा भुगतान करना पड रहा है इसलिए तेल की कीमते बढाई गई है ऐसा तर्क दिया गया है ।

अगर इस तर्क के आधार पर तेल की कीमते बढाई गई है तो फिर मार्च 2009 में डालर अपने अधिकतम स्तर पर था जब एक डालर के बदले 51 रू 21 पैसे देने पडे थे क्या आपको मालूम है उस समय पेट्ोल के देश मे क्या भाव थे उस समय पेट्ोल के दाम 40 रू 62 पैसे प्रति लीटर थे । इस तर्क पर यदि पेट्ोल के दामो मे बढोतरी हो तो फिर 2009 मे पेट्ोल  40 रू 62 पैसे प्रति लीटर क्यो था । इस तरह के लचर कारण देकर तेल कम्पनियां शायद सरकार को गुमराह कर जनता को लूट रही है ।

सरकार को चाहिए कि वह तेल कम्पनियों पर पूरी निगरानी रखे । कम्पनिया  अपने लाभ को कम नही करना चाहती इसलिए जब भी अन्तर्राष्ट्ीय बाजार में कच्चे तेल के भावों में बढोतरी होती है वह दाम बढा देती है और जब भी डालर के मुकाबले रूपया कमजोर होता है तो इस तर्क के आधार पर दाम बढा देती है अर्थात् वे अपने निर्धारित लाभ को किसी भी स्थिति में कम नही होने देना चाहती । ये तो वह बात हो गई कि चाहे जनता जाए भाड मे इन कम्पनियों को अपने लाभ से मतलब है वह कम नहीं होना चाहिए ऐसे में लोकतात्रिक सरकार का यह दायित्व हो जाता है कि वह यह देखे कि जनता जब चारो से मंहगाई की मार से दबी जा रही है तो इन कम्पनियों को अपने निश्चित लाभ को थोडा कम करने की सलाह देकर दाम बढाने की अनुमति नहीं देनी चाहिए ताकि मंहगाई से त्रस्त जनता को सडको पर उतरने पर मजबूर न होना पडे ।

जून 2009 से पहले तक पेट्ोल के दाम निर्धारित करने का अधिकार सरकार को था लेकिन जून 2009 के बाद तेल कम्पनियों को अपने स्तर पर दाम निर्धारित करने की छूट दे दी गई तथा हर 15 दिनों में इसकी समीक्षा करने का निर्णय लिया गया । लेकिन सरकारी तंत्र मे कौन समीक्षा करे  इसमे व्यवस्था तो यह  है कि अन्तर्राष्ट्ीय बाजार में तेल के भावो के आधार पर पेट्ोल डीजल के दामों में कमी बढोतरी की जाए । जब दाम बढे  तो उसी अनुरूप दामों बढोतरी की जावे तथा जब इसमें कमी हो तो उसी अनुरूप दामो मे कमी भी हो लेकिन आश्चर्य जनक बात है कि अन्तर्राष्ट्ीय बाजार मे तेल के दामो मे कमी हुई तो दामो मे उसी अनुरूप कमी नहीं की र्गइं लेकिन दामो मे बढोतरी होते ही तेल कम्पनियों से दामों में बढोतरी कर दी है । ये कैसी समीक्षा हुई । जनता को जब राहत मिलनी चाहिए तब तो न तो सरकारी समीक्षको ने जनता की पैरवी करते हुए तेल कम्पनियों से जनता को राहत दिलाई और न ही किसी राजनीतिक दल ने इस विषय को कभी उछाला । लेकिन जब अन्तर्राष्ट्ीय बाजार मे तेल मे भावों मे इजाफा हुआ या डालर के मुकाबले रूपया कमजोर हुआ तो बिना देरी किये समीक्षको ने दाम बढाने की छूट दे दी

जब जून 2008 में अन्तर्राष्ट्ीय बाजार में कच्चे तेल के दाम अपने उच्चतम स्तर 140 डालर प्रति बैरल पर था तब भी पेट्ोल के भाव इतने नही थे उस समय हमारे देश मे पेट्ोल के दाम 50 रू 56 पेसे प्रति लीटर थे जबकि वर्तमान में अन्तर्राष्ट्ीय बाजार मे तेल के भाव 110 रू प्रति बैरल है तो पेट्ोल के दाम 72 से 74 रू प्रति लीटर हो गए है इन दामों मे केन्द्रीय एक्साइज केन्द्रीय टेक्स वेट राज्य टेक्स आदि अलग से है अर्थात् अलग राज्यो में टेक्स के हिसाब से पेट्ोल 73 से 75 रू प्रति लीटर तक हो सकता है ।

तेल कम्पनियों ने गत  13 सितम्बर 2011 की आधी रात से पेट्ोल के दामो 3 रू 14 पैसे प्रति लीटर की बढोतरी की थी आकडे बताते है कि उस समय भारतीय कम्पनियो को एक डालर के मुकाबले 49 रू 29 पैसे चुकाने पड रहे थे । तथा तेल का अन्तर्राष्ट्ीय भाव भी 110 डालर प्रति बैरल  पर ही स्थिर था । अभी नवम्बर मे  1 रू 82 पैसे प्रति लीटर की जो बढोतरी की गई है उसमे तेल कम्पनियों को एक डालर के मुकाबले 49 रू 20 पैसे ही चुकाने पड रहे है अर्थात् सितम्बर के मुकाबले तेल कम्पनियो को एक डालर के मुकाबले 09 पैसे कम चुकाने पड रहे है तो ऐसे में पेट्ोल के दाम  13 सितम्बर 2011 के स्तर से कम होने चाहिए जबकि तेल कम्पनियो ने डालर के दामों मे  बढोतरी का बहाना बनाकर पेट्ोल के दामो मे 1रू 82 पेसे प्रति लीटर की बढोतरी कर  जनता व सरकार दोनो को धोखा दिया है ।

एक तथ्य यह भी तेल कम्पनियों ने जून 2009 से पेट्ोल डीजल के दामो को बढाने की उन्हे छूट मिली है तब से लेकर अब तक सिर्फ एक बार पेट्ोल के दामो मे कमी की है जबकि हर बार दाम बढाए ही है । जिस समय सरकार ने तेल को दामों को निर्धारित करने का जिम्मा दिया गया उस समय देश मे पेट्ोल के दाम 40 रू 62 पैसे प्रति लीटर थे । तथा अन्तराष्ट्ीय बाजार मे तेल 71 डालर प्रति बैरल था। जुलाई 2009 में ही अन्तर्राष्ट्ीय बाजार मे तेल के भाव 71 से घटकर 62 डालर प्रति बैरल हुए तो भी तेल कम्पनियो ने पेट्ोल के दाम घटाने की बजाय 4 रू 05 पैसे प्रति लीटर बढा दिये अर्थात् पेट्ोल 44 रू 67 पैसे प्रति लीटर कर दिया गया जबकि उन्हे दामो कमी करनी चाहिए थी तेल कम्पनियों ने उस समय भी जनता की जेब काटी । उस समय की समीक्षको की टीम ने क्या आंखे बंद कर रखी थी जब तेल कम्पनियां जनता की जेव काट रही थी । अप्रेल 2010 तक अन्तराष्ट्ीय बाजार मे तेल के भाव 86 डालर प्रति बैरल तक पहुंचे तो तेल कम्पनियों ने भी दाम बढाए लेकिन मई 2010 मे अन्तर्राष्ट्ीय बाजार मे तेल के भावों में फिर कमी आई और मई 2010 मे इसके भाव 74 डालर प्रति बैरल हो गए तो भारतीय तेल कम्पनियों ने पेट्ोल के दाम घटाने की बजाय पेट्ोल 1 रू 40 पैसे प्रति लीटर बढा दिये और जो पेट्ोल अप्रेल 2010 में जनता को 44 रू 47 पैसे प्रति लीटर मिल रहा था मई 2010 में अन्तर्राष्ट्ीय बाजार मे तेल के दाम घटकर 74 डालर प्रति लीटर रह जाने पर भी भारत की जनता को 1 रू 40 पैसे प्रति लीटर महगा करते हुए 45 रू 87 पैसे प्रति लीटर बेचा गया । इस प्रकार तेल कम्पनियों ने जनता की जेव काटने का सिलसिला जारी रखा और प्रति 15 दिन से समीक्षा करने की नीति कागजो मे ही दबी रह गई ।

मई 2010 से अप्रेल 2011 तक अन्तर्राष्ट्ीय बाजार मे तेल के भावो में बढोतरी रही जो 74डालर प्रति बैरल से बढते बढते अप्रेल 2011 में 122 डालर प्रति बैरल तक पहुंच गर्इ्र इस समय तक तेल कम्पनियों ने तेल के भाव 58 रू 37 पैसे प्रति लीटर तक कर दिये थे । मई 2011 मे अन्तर्राष्ट्ीय बाजार मे तेल के भाव गिरकर 112 डालर प्रति बैरल रह गए लेकिन तेल कम्पनियों ने फिर भी मई 2011 में पेट्ोल के दामाे मे 5 रू प्रति लीटर की बढोतरी कर दी जबकि 10 डालर प्रति बैरल की कमी होने के कारण पेट्ोल के दामों में बढोेतरी की बजाय कमी की जानी चाहिए थी यहा भी तेल कम्पनियो ने जमकर लाभ कमाया । अप्रेल 2011 मे जब अन्तर्राष्ट्ीय बाजार मे तेल का भाव 122 डालर प्रति बैरल था तब जनता को पेट्ोल 58 रू 37 पैसे प्रति लीटर मिल रहा था जबकि वर्तमान मे अन्तर्राष्ट्ीय बाजार मे तेल की कीमत 12 डालर प्रति बैरल कम हो चुकी है तथा दाम 110 डालर प्रति बैरल है तो भी भारतीय जनता को पेट्ोल कम दामों की बजाय 10 रू 96 पैसे प्रति लीटर महगा मिल रहा है  तेल कम्पनियों का ये कैसा खेल चल रहा है और समीक्षा कमेटी कैसी समीक्षा कर तेल के दाम बढाने की अनुमति दे रही है  क्या ये मिली भगत से जनता को लूटने का खेल तो पर्दे के पीछे नहीं ख्ाला जा रहा ।

तेल कम्पनियां इस बार पेट्ोल के दाम बढाने की पीछे अन्तर्राष्ट्ीय बाजार मे तेल के दाम बढने का कारण नही बता रही बल्कि तर्क ये दिया जा रहा है कि डालर के मुकाबले भारतीय रूपये का मूल्य कम हो जाने के कारण उनको अब ज्यादा भुगतान करना पड रहा है ।अब कम्पनियों को एक डालर के मुकाबले 49 रू 20 पैसे का भुगतान करना पड रहा है । जबकि अप्रेल 2011 मे उन्हे एक डालर के बदले 44 रू 40 पैसे का ही भुगतान करना पडता था  अर्थात् उन्हे एक डालर के बदले 4 रू 80 पैसे ज्यादा चुकाने पड रहे है जबकि तेल कम्पनिया अप्रेल 2011 से अब तक जनता से 10 रू 96 पैसे प्रति लीटर ज्यादा वसूल रही है । एक बैरल मे करीब 159 लीटर होते है अर्थात् तेल कम्पनियों को 159 लीटर तेल के बदले 49रू 20 पैसे प्रति डालर के हिसाब से 5412 रूपये अन्तर्राष्ट्ीय बाजार में चुकाने पड रहे है जिसकी लागत  करीब 34 रू 03 पैसे प्रति लीटर आती है । इस पर परिवहन चार्ज एक्साइज ड्यूटी  केन्द्रीय कर वेट व राज्य का कर व अन्य शहरो मे यह स्थानीय कर व लेवी अतिरिक्त है ।