गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

अमेरिका में भारत की डिप्टी काउंसलेट जनरल देवयानी की गिरफ्तारी - भारतीय कूटनीति की कमी

अमेरिका के न्यूर्याक में भारत की डिप्टी काउंसलेट जनरल देवयानी खोब्रागडे के खिलाफ वीजा धोखाधडी व भारतीय नौकरानी  के वेतन को लेकर उनके खिलाफ अमेरिकी प्रशासन द्वारा की गिरफ्तारी के बाद भारत मे जो बवाल मचा है वह भारतीय नीतियों की कमजोरियों का परिणाम है । हमारे देश की नीतिया व दूसरे देशो की नीतियों में बडा अन्तर ही इस प्रकरण की जड मे है । मामला हमारे देश के कानून  व अमेरिका के कानूनो मे अन्तर का प्रतीत होता है । भारत अपने राजनयिको को अपने यहा घरेलू नौकर रखने की अनुमति देता है तथा उन्हे वेतन के साथ ऐसे घरेलू नौकरों को भुगतान करने के लिए एक निश्चित राशि देता है  जो कि नाकाफी होती है । जैसे भारत में सरकारी कर्मचारियों को महंगाई भत्ता दिया जाता है लेकिन वह केवल नाममात्र की राशि होती है  इस महंगाई भत्ते से एक कर्मचारी महंगाई से पार नहीं पा सकता  क्योकि यह राशि महंगाई से लडने के लिए पर्याप्त नहीं होती फिर भी कर्मचारी अपने अन्य खर्चो मे कटौति कर महंगाई से जूझने का प्रयास करता है ऐसे ही भारतीय राजनयिको को घरेलू कार्यो मे हाथ बंटाने हेतु दिए जाने वाले  भत्ते की रकम भी नाम मात्र की होती है लेकिन फिर भी भारतीय राजनयिक इस मिलने वाली रकम से ज्यादा ही अपने घरेलू नौकरो को भुगंतान करते है अगर  वे उन्हे सरकार द्वारा दी जाने वाली राशि  पर ही घरेलू नौकर रखने की जिद कर ले तो उन्हे कोई घरेलू नौकर मिले ही नही । अमेरिका मे घरेलू नौकरो को न्यूनतम मजदूरी या वेतन देने के कानून है उसके अनुसार न्यूनतम वेतन से कम पर अगर कोई नागरिक नौकर रखता है तो वह कानूनन अपराध है  और इसकी शिकायत अगर कोई नौकर वहां के प्रशासन से कर देता है तो  अमेरिकी कानून के अनुसार मालिक के खिलाफ कार्यवाही की जाती है ।
देवयानी के प्रकरण मे भी ऐसा ही हुआ उनकी घरेलू नौकरानी ने अमेरिकी प्रशासन के समक्ष अमेरिकी कानून के अनुरूप वेतन न देने की शिकायत अमेरिकी प्रशासन के समक्ष रखी जिस पर देवयानी को गिरफ्तार कर कस्टडी मे रखा गया । यहा प्रश्न है कि क्या देवयानी की गलती है  वे अपने नौकरों को  अमेरिकी कानून के अनुसार न्यूनतम मजदूरी क्यों नही देती  क्या अमेरिकी प्रशासन ने अपने कानून के अनुसार सही नही किया  अमेरिकी प्रशासन के पास उनकी घरेलू नौकरानी ने अमेरिकी कानून के अनुसार मजदूरी न मिलने की शिकायत की होगी तभी न्यूर्याक मे अमेरिकी अटानी प्रीत भरारा जो कि बहुत ही ताकतवर अभियोक्ताओं मे से एक है ने इस मामले को सुर्खियों में ला दिया । वास्तविकता यह है कि प्रीत भरारा उन विदेशी लोगो के खैर ख्वाह है जिनको अमेरिकी कानून के हिसाब से वहां सुविधाएं नही मिल रही । वे उन लोगो की बात उठाते है और उनको अमेरिकी कानून के हिसाब से अधिकार दिलाने की पैरवी करते है । इस प्रकरण मे भी ऐसा लगंता है कि देवयानी की नौकरानी उनके पास पहुच गई और उन्होने केस खडा कर दिया और भारत मे बवाल हो गया ।
        दरअसल समझने की बात यह  है कि भारत जितने भी देशो मे अपने राजनयिक भेजता है क्या वह उन राजनयिको को वहां के कानून के हिसाब से सारी सुविधाएं उपलब्ध कराता है  मेरी राय मे नही! उसी कारण देवयानी जैसे प्रकरण प्रकाश मे आते है । भारत सरकार को या तो भारतीय राजयनयिको को संबंधित देश के कानून के हिसाब से सारी सुविधाए देनी चाहिए अथवा भारत की सरकार को संबंधित देश के साथ अपने राजनयिको को दी जा रही सभी  संबंधित  सुविधाओं  का समझौता करना चाहिए ताकि किसी भी राजनयिक को इस तरह अपमानित न होना पडे । दरअसल ये भारतीय कूटनीति की कमी का परिणाम है । आज देवयानी के साथ ऐसा हुआ है कल किसी और देश में भी तो ऐसा हो सकता है। इसलिए  किसी भी राजनयिक को विदेश मे अपमानित न होना पडे इसके लिए पुख्ता व्यवस्था होनी चाहिए । भारतीय विदेश विभाग की यह जिम्मेदारी है कि वह प्रत्येक राजनयिक तथा उनके साथ यहा से भेजे जाने वाले कर्मचारी की सभी सेवा शर्तो का एक लिखित दस्तावेज संवंधित देश की सरकार के विदेशी मामलों के विभाग से अप्रूव्ड कराने के बाद ही उन्हे वहा भेजे ताकि वहा जाकर वह कर्मचारी ऐसी कोई शिकायत करने के लिए कानूनन अधिकारी ही न हो । जागरूकता मे हुई बढोतरी बढती महत्वकांक्षाओ आदि कारणो से सरकार को भी ऐसा मानस छोडना होगा कि पहले से ही ऐसा हो रहा है इसलिए अब क्यो नहीं होता इस सोच से वहा का कानून तो नहीं बदलेगा  हमे संबंधित देश के कानूनो के अनुरूप अपने विदेशी राजनयिको  उनके अधिनस्थ कार्य कर रहे कार्मिको की सुरक्षा एवं सुविधाओ का ध्यान रखना होगा तभी हमारे राजनयिक व कार्मिक विदेशो मे सुरक्षित व सम्मानित रह सकेगे ।  

        आज आवश्यकता इस बात है कि हमारे देश के विदेश विभाग को इस विचार करना होगा कि इस तरह की कमी का फायदा उठकार और किन किन देशो में हमारे राजनेताओ राजनयिको व उनके अधीन कार्य करने वाले कार्मिको को अपमानित होना पड सकता है । ऐसी स्थिति भविष्य मे आए उससे पहले ही उसका समाधान कर दिया जावे तो किसी को भी ऐसी स्थिति पैदा करने का मौका ही नही मिलेगा । आवश्यकता है तो सिर्फ मानिटरिंग कमेटी को सक्रिय करने की जो  विदेशो मे जाने वाले हमारे राजनीतिज्ञो राजनयिको व उनके अधिनस्थ कार्मिको के सम्मान को बनाए रखने के लिए वहा के कानूनो का अध्ययन कर उसके अनुरूप व्यवस्थाए करने के सुझाव दे सके व उनको क्रियान्वित कर सके । वरना कभी कोई देश हमारे किसी राजनीतिज्ञ की तलाशी इस तरह लेगा कि देश शर्मसार हो जाएगा तो कभी देवयानी जैसे राजनयिक अपमानित महसूस करेगे । ऐसी स्थिति न आएं इसके लिए पुख्ता इंतजाम किए जाने की महती जरूरत है ।

रविवार, 23 जून 2013

उतराखण्ड आपदा: पुर्ननिर्माण मे न दोहराई जाएं पुरानी गलतियां: ऐसे हो उपाय

उतराखण्ड में नए सिरे से पुर्ननिर्माण होना जरूरी हो गया है तभी देव भूमि में यात्रियों के आने का सिलसिला शुरू हो सकेगा । लेकिन इस बार पुर्ननिर्माण में आपदा प्रबंधन की कार्ययोजना बनाई जाकर उसी अनुरूप निर्माण हो तो ज्यादा अच्छा होगा । कुछ ऐसे उपाय है जिन्हे अपनाकर प्राकृतिक आपदा को कम किया जाकर जान माल के नुकसान को रोकने का सार्थक प्रयास किया जा सकता है:-

 

 
Ø उतराखण्ड सरकार को पहाडों की निगरानी के लिए एक तंत्र का विकास करना चाहिए । जिस तरह से रेलवे ट्ेक की निगरानी गैंग मैन करते है उसी प्रकार पहाडों की लेण्ड स्लाईड की निगरानी के लिए चार धाम मार्गो पर भी इसी तरह की निगरानी के लिए कर्मचारी नियुक्त किये जाए जो अपने क्षेत्र के पहाडी रास्तों निगरानी करे व पहाडों में आई दरारों की जानकारी अपने  उच्चाधिकारियों  को दें और वे तुरन्त उनका समाधान करें । इसके अलावा ये कर्मचारी पहाडों के किनारे होने वाले अतिक्रमणों की रिर्पोट भी करें ताकि पहाडों की न केवल सुरक्षा हो सके बल्कि पहाडों से निकलने की पर्याप्त जगह भी बनी रहे ।


Ø सडको के पुर्ननिर्माण  मे वाहनों को निकलने की पर्याप्त जगह छोडते हुए  निर्माण किए जावे यही नहीं पानी का बहाव इस तरह किया जावे की वह सडकों को कम से कम नुकसान पहुचावं । इसके अलावा सडकों के उपर के पहाडों के बीच इतनी जगह छोडी जाए कि लेण्ड स्लाईडिंग की स्थिति में मलबा कम से कम रास्ते को अवरूद्ध करें । पर्याप्त व उचित तकनीक अपनाकर  पहाडों को सुरक्षित किया जा सकता है ।


Ø इसके अलावा वैकल्पिक मार्ग की संभावनाएं भी तलाशनी होगी ताकि आपात स्थिति में उन मागों से आवागमन संभव हो सके । उन वैकल्पिक मार्गो भी देखरेख भी उसी तरह हो जिस तरह कि आम मार्गो की हो । पहाडों से पानी को निकलने के रास्ते निकाले जावें ताकि पानी सामान्य तरीके से आसानी से अपने रास्ते से ही होकर नदीयों में मिलें ।


Ø इसके अलावा पहाडी क्षेत्रों में जगह जगह आपात स्थिति के लिए हवाई पट्टीयों का निर्माण किया जावें और उनकी दूरी निश्चित हो ताकि लोगों को शीघ्राति शीघ्र निकाला जा सके ।


Ø पहाडी क्षेत्रों में सेटेलार्इ्रट फोन का उपयोग हो ताकि मौसम की खराबी के कारण सम्पर्क की कोई परेशानी न हो । यात्रियों के मोबाईल फोन भी उस क्षेत्र में प्रवेश करते ही स्वतः ही सेटेलाईट से जुड जांए ताकि वे अपने बारे में सही जानकारी दे सके ।


Ø पहाडी क्षेत्रों में हर 10 किलोमीटर के क्षेत्र में आधुनिक तकनीकों से लैस भण्डारगृह स्थापित किये जावे ताकि आपदा के समय जल्दी से राहत उपलब्ध हो सके ।

शनिवार, 22 जून 2013

उतराखण्ड में यात्रियों को निकालने की कवायद


उतराखण्ड में यात्रियों को निकालने की कवायद जिस तरीके से की जा रही है उससे नहीं लगता कि आने वाले 48 घंटों में वहॉ फंसे करीब 50 हजार लोगों को निकाला जा सकेगा । आपदा प्रवन्धन के नाम पर उतराखण्ड में कुछ भी इन्तजाम नहीं दिखाई दे रहे । वहॉ की व्यवस्था तो भगवान भरोसे ही चल रही थी जिसका भण्डाफोड तो भारी बारिश व बाढ जैसी इस प्राकृतिक आपदा के आने के बाद ही लोगो को हो सकी । जबकि सच्चाई ये है कि वहॉ प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु पूरे देश भर से जाते हैं  और यही नहीं प्रति वर्ष कोई न कोई रास्ता भारी बारिश व बाढ की वजह से बंद होता ही है । लेकिन इस बार सभी रास्ते बंद होने व काफी श्रद्धालुओं का वहॉ फसे होने के कारण पूरे देश का ध्यान इस ओर गया यही नहीं केदारनाथ की भारी तबाही ने ही उतराखण्ड सरकार की आपदा प्रबन्धन की पोल खोल कर रख दी ।

       उतराखध्ड सरकार को यह जानकारी ही नहीं है कि ऐसे दुर्गम पहाडी स्थानों पर भारी बारिश की वजह से कहां कहां पहाड गिर सकते है यदि उसे जानकारी होती तो आज 6 दिन बाद भी यह स्थिति नहीं होती  और करीब 50 हजार लोग निकलने के लिए तडप नहीं jgs होते  उनको रेस्क्यू करके अब तक निकाल लिया गया होता । लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि लोग भटकते भटकते स्वयं ही  पहुंच रहे है जहॉ उन्हे सेना की मदद मिल रही है स्थानीय प्रशासन व सरकार की ओर से कोई व्यवस्थाए नहीं है ये सब टी वी पर लोगो को बोलते हुए दिखाया जा रहा है । लोगो को 6 -6 दिनों से खाना पानी व दवाईयां नहंी मिली है इसका अर्थ ये है कि उतराखण्ड सरकार व प्रशासन को ये आभास ही नहीं है कि लोग कहां कहां फंसे हो सकते है और उनको कैसे निकाला जा सकता है ।

       सेना ने कमान 4 दिन बाद संभाली है तब पता चला है कि लोग कितने परेशान है । बुर्जुग बच्चे महिलाएं कैसे खाने पानी को तरस रहे है । स्थानीय लोग श्रद्धालुओं की मजबूरी का फायदा उठाकर किस तरह पानी की एक बोतल के  50 रू तक वसूल रहे है । जिन लोगों के पास नकदी पैसा है वे तो इन मुंहमांगी किमतों को अपनी जान बचाने के लिए भुगतान कर रहे है लेकिन उन लोगो के बारे में सोचकर ही रूह कांप उठती है जिन लोगो के रिश्तेदार इस बाढ में बह गए और जिनके पास कुछ भी नहीं बचा वे कैसे जी पांए होगे ।

       लगता है उतराखण्ड सरकार  व प्रशासन के साथ साथ  वहां के लोगों की भी मानवीय संवेदनाएं समाप्त हो गई है जो इस आपदा में उनके ही प्रदेश में फंसे लोगों की सहायता के बजाय उनसे मुंहमांगी वसूली करने पर आमदा है । एक तरफ जहां पूरा देश इस संकट की घडी में बाढ में फंसे श्रद्धालुओं की कुशलक्षेम के लिए हरसंभव सहायता व दुआएं कर रहा है वहीं दूसरी तरफ उतराखण्ड के लोग श्रद्धालुओं के लिए अपने द्वार खोलने की बजाय उनसे जीवन रक्षक पानी व खाने की चीजों की मुंहमागी वसूली कर रहा है । इससे ज्यादा अमानवीय  व संवेदनहीन बात क्या हो सकती है ।

       उतराखण्ड की सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग के पास ऐसी आपदा से निपटने के लिए कोई कार्ययोजना ही नहीं है । कितना आश्चर्यजनक है कि पहाडों में होने वाली आपदाओं के बारे में इस विभाग के  कोई  तंत्र ही विकसित नहीं किया  तो फिर उनसे निपटने की कार्ययोजना कैसे बनती । यदि कोई तंत्र विकसित होता तों 7 दिन बाद भी लोग इस तरह फंसे हुए व खाने पानी व दवाईयों के लिए तरस नहीं होते।  5 दिन तक तो स्थानीय प्रशासन अपने स्तर पर देश को यह आश्वासन देता रहा कि  शीघ्र ही फंसे लोगो को निकाल लिया जाएगा । लेकिन जब 5 दिन बाद भी स्थानीय प्रशासन  व प्रदेश की सरकार द्वारा लोगों को नहीं निकाला जा सका तो सेना की मदद ली गई जबकि सेना को तुरन्त ही बुला लिया गया होता तो काफी लोगों की जान बचाई जा सकती थी तथा इतने दिनों से फंसे लोगो को उनके घरो तक पहुंचाया जा सकता था । कितने दुख की बात है कि स्थानीय प्रशासन व सरकार ने पूरी ईमानदारी से अपनेबदइन्तजामात      का खुलासा नहीं किया जिसके कारण हजारों लोगों को अपनी जान पर खेलना पड रहा है ।

       अब फिर वहां बारिश होने की चेतावनी जारी की गंई है सेना के पास केवल 48 घंटे है और 50 हजार लोगो को निकाला जाना अभी बताया जा रहा है । देहरादून व ऋषिकेश में आज सुबह से ही रूक रूक कर बारिश होने के समाचार है जिसके कारण बचाव कार्य में उतनी तेजी नहीं आ पा रही है जितनी की जरूरत है ।

       ऋषिकेश से गंगोत्री व यमुनोत्री के मार्ग पर करीब 32 हजार श्रद्धालु फंसे हुए है । इस मार्ग पर यमुनोत्री के पास खरसाली में करीब 4000 हजार लोग तो उतरकाशी में 6000 हजार लागबगड में करीब 5800 टिहरी में 3000 हजार श्रीनगर में 8000 हजार तो ऋषिकेश में करीब 5000 हजार लोग अपने घरों को जाने की राह ताक रहे है । 

       श्रीनगर से केदारनाथ मार्ग पर करीब 5500 श्रद्धालुआं के अभी भी फंसे होने की जानकारी है । अकेले गौरीकुण्ड मे 3500 लोग अभी भी  निकाले जाने की बाट जोह रहे है जबकि गुप्तकाशीं में भी 2000 लोग अटके हुए बताए जाते है ।

       रूद्र प्रयाग से बद्रीनाथ जाने वाले मार्ग पर भी करीब 11000 हजार लोग फंसे हुए बताएं जा रहे है जिसमें चमोली में 7000 हजार गोंिबदघाट मे 3500 व बद्रीनाथ में भी सैकडों लोग अपने घरों को लौटने का इंतजार कर रहे है ।

       हेमकुण्ड साहिब मे भी अभी तक करीब 2000 लोग फंसे हुए है ।

       भारतीय वायुसेना उसी स्थिति में फंसे लोगो को निकालने मे कामयाब हो सकती हे जबकि मौसम साथ दें । यदि मौसम ने साथ नहीं दिया तो और परेशानी हो सकती  है । रेस्क्यू आपरेशन में लोगों को निकालने के साथ साथ जहॉ लोग फंसे है वहॉ पूरी रसद पहुंचाना भी काफी जरूरी है ताकि यदि मौसम साथ नहीं दे तो कम से कम वहां फंसे लोगों को खाना पानी व दवाईया तो मिल सके । यदि एक दो दिन मौसम साफ नहीं हो तो पिछले हफ्ते भर से पानी खाने व दवाईयों को तरसते लोगों को एक बार फिर परेशान नही होना पडें ।  ईश्वर ना करें कि फिर कोई आपदा आएं लेकिन मौसम के मिजाज का कोई भरोसा नही कब क्या हो जाएं इसलिए इंतजाम तो जरूरी है ।

       इसके अलावा जैसा कि मौसम विभाग ने चेतावनी दी है कि 2425 जून को उतराखण्ड के इन पहाडी इलाकों में फिर बारिश हो सकती है इसलिए सेना इस अवधि में 50 हजार लोगों को निकाल पाएगी इसमें सशंय दिखाई पडता है इसके लिए ये जरूरी है कि यदि सेना को रेस्क्यू आपरेशन में कोई परेशानी हो भी तो कम से कम इतने दिनों से पीडा झेल रहे यात्रियों को अब कोई दुख नही झेलना पडें । डन्हे सुरक्षा का ऐसा आभास हो कि अब वे सुरक्षित है और अगर कोई आपदा आई भी तो सेना हमें बचाने में सक्षम है । सुरक्षा से ज्यादा सुरक्षा का अहसास  लोगो को काफी राहत दे सकता है ।

ये यक्ष प्रश्न मांगे जबाव उतराखण्ड सरकार व आपदा प्रबन्धन विभाग से


·         लगता है उतराखण्ड सरकार को यह जानकारी ही नहीं है कि ऐसे दुर्गम पहाडी स्थानों पर भारी बारिश की वजह से कहां कहां पहाड गिर सकते है उतराखण्ड सरकार व प्रशासन को ये आभास ही नहीं है कि लोग कहां कहां फंसे हो सकते है और उनको कैसे निकाला जा सकता है ।

·         लगता है आपदा प्रबंधन विभाग के पास ऐसी आपदा से निपटने के लिए कोई कार्ययोजना ही नहीं है । कितना आश्चर्यजनक है कि पहाडों में होने वाली आपदाओं के बारे में इस विभाग के  कोई  तंत्र ही विकसित नहीं किया  तो फिर उनसे निपटने की कार्ययोजना कैसे बनती ।

·         जब 5 दिन बाद भी स्थानीय प्रशासन  व प्रदेश की सरकार द्वारा लोगों को नहीं निकाला जा सका तो सेना की मदद ली गई जबकि सेना को तुरन्त ही बुला लिया गया होता तो काफी लोगों की जान बचाई जा सकती थी

·         रेस्क्यू आपरेशन में लोगों को निकालने के साथ साथ जहॉ लोग फंसे है वहॉ पूरी रसद पहुंचाना भी काफी जरूरी है ताकि यदि मौसम साथ नहीं दे तो कम से कम वहां फंसे लोगों को खाना पानी व दवाईया तो मिल सके ।

गुरुवार, 20 जून 2013

उतराखंड में प्राकृतिक आपदा जिला प्रशासन अपने क्षेत्र के हर एक किलोमीटर के एरिया की रिर्पोट के लिए स्थानीय कर्मचारियों समाजसेवी संगठनों को जिम्मेदारी दे


उतराखंड में जो प्राकृतिक आपदा आई है उसमें हजारों लोग अभी भी सहायता के इन्तजार में है लेकिन प्रशासन द्वारा अभी तक कोई राहत उन तक नहीं पहुंच पांई है इसका कारण एक तो वहंा की दुर्गम स्थिति है और दूसरी मौसम की बदलती स्थिति है इसके अलावा जो रेस्क्यू आपरेशन चलाया जा रहा है वह भी व्यवस्थित नहीं हे । लोग पिछले चार पांच दिनों से भूखे प्यासे सहायता का इन्तजार कर रहे है अगर उन तक शीघ्र ही सहायता नही पहुंची तो उनमें से अधिकांश लोग भूख प्यास और बीमारी से दम तोड देगें । 

      उतराखण्ड में स्थानीय प्रशासन को अपने क्षेत्र के प्रभावित क्षेत्रों को तुरन्त चिन्हीत कर वहा फॅसे लोगो की पहचान करनी चाहिए इसके लिए जिला प्रशासन को हर एक किलोमीटर के एरिया की रिर्पोट के लिए स्थानीय कर्मचारियों को जिम्मेदारी देकर तुरन्त इसकी जानकारी प्रशासन को देने की हिदायत दी जा सकती है । कर्मचारियों के अभाव की स्थिति में समाजसेवी संगठनों व्यापारिक संगठनों जन प्रतिनिधियों  वार्ड मेम्बरों वार्ड पंचों को इस आफत की घडी में ऐसी जिम्मेदारी दी जा सकती है । ये कार्य वहा के स्थानीय निवासी कर सकते है । सबसे पहले ऐसे लोगों तक खाना पानी व दवाईयां पहुचाई जानी चाहिए तत्पश्चात् प्रभावित लोगों को वहा  से निकालने के प्रबंन्ध किये जाने चाहिए । अभी तक जो रेस्क्यू आपरेशन चल रहा है उससे ऐसा लगंता है कि उसमें कोई तारतम्यता नही है जहा से भी सूचना मिल रही है वहॅ टीमें भ्ेजी जा रही है लेकिन कुछ लोग ऐसे स्थानों में फॅसे है जहा से प्रशासन को कोई भी सूचना नहीं मिल पाई है क्योंकि लोगों के मोबाईल फोन ठप्प हो गए है ।

       टीवी चैनलों पर दिखाई जा रही रिर्पोटो से तो ऐसा लगता है कि फॅसे हुए लोग जैसे तैसे अपने परिजनों को सूचना भिजवा रहे है लेकिन स्थानीय प्रशासन तक इनकी सूचना नहीं पहुच पा रही है इससे ऐसा लगता है कि स्थानीय लोग जो कि उस क्षेत्र से परिचित है अभी तक स्थानीय प्रशासन को सूचना नहीं दे पा रहे है । चूंकि श्रद्धालुओं को अपने फॅसे होने की स्थिति का पूरा ज्ञान नहीं है इंसलिए प्रशासन भी उन तक नहीं पहुॅच पा रहा है ।

      ऋषिकेश से बद्रीनाथ केदारनाथ गंगोत्री व यमुनोत्री के मार्ग जिस स्थान से बंटते है उनका बेस केम्प तो  उसी स्थान पर होना चाहिए जिससे यह होगा कि जो जिस मार्ग पर फॅसे है उनका बेस केम्प वहा होने से उनके परिजनों को यह जानकारी हो सकेगी उनके फॅसे परिजन किस बेस केम्प को रेफर किये जाऐगें जिससे वे उनसे सम्पर्क कर सकेगें क्योंकि अधिंकाश परिजनों को उनकी अंतिम बाताचीत के अनुसार मालूम है कि उनके प्रभावित परिजनों ने उन्हे वहा की लोकेशन बताई थी । इसलिए इस मार्ग का बेस केम्प वहां बनाया गया है अतः उनके परिजन संबंधित बेस केम्प मे ही रेफर होगें ।

      इन मार्गो पर स्थित जिलो प्रशासन को अपने क्षेत्र में अवरू़द्ध हुए मार्गों को चिन्हीत कर वहा फॅसे श्ऱद्धालुओं तक सबसे पहले खाना पानी व दवाईयां पहुंचाने का इन्तजाम करना चाहिएं  अवरूद्व हुए मार्गा व फॅसे लोगो की जानकारी उस क्षेत्र के ग्रामसेवकों पटवारियों जनप्रतिनिधियों तथा ग्रामिणों से ली जा सकंती है । इसके अलावा इतने दुर्गम मार्ग की देखरेख के लिए जिम्मेदार सार्वजनिक निर्माण विभाग के निरीक्षक एवं कर्मचारियों की रिर्पोटों के आधार पर भी  अवरू़द्ध व लैण्ड स्लाईडस एरिया की जानकारी हो सकती है ।

       ये सामान्य सी बात है कि जहा लैण्डस्लाईडस हुआ है उसके आस पास ही फॅसे लोगो का जमावडा होगा । क्योंकि उन्हे वहा से आगे निकलने का रास्ता नही मिल सका है । इसलिए श्रद्धालुओं की सबसे बडी संख्या ऐसे स्थानों पर ही होगी । इसके अलावा ये भी हो सकता है कि लैण्डस्लाईडस के समय उसके आसपास रहे लोग उसी क्षेत्र के आसपास स्थित सुरक्षित स्थान पर चले गए हो और अभी भी वहंी फॅसे हुए हो अतः हवाई सर्वेक्षण से ऐसे लोगो को ढूढा जा सकता है इसके अलावा ये भी संभव है कि आसपास के गांवों में उन्होने शरण ले रखी हों । बिजली न होने के कारण मोबाईल सेवाए ठप्प हो गई हो मोबाईल बैटरिया इतने दिनों तक चार्ज नही रह सकती इसलिए वे अपने परिजनो से भी सम्पर्क नहीं कर सकते हो। जैसे जैसे स्थिति सुधर रही है प्रभावित लोगो को मोबाईल चार्ज करने की सुविधा मिल रही है वे अपने परिजनों से सम्पर्क कर रहे है ऐसे लोगों तक सहायता पहुॅचाने के लिए परिजनों को उन्हें टीवी पर दिखाए जा रहे नम्बरों को सम्पर्क करने एवं स्वयं भी उन नम्बरों पर सम्पर्क कर स्थिति की जानकारी देने का प्रयास करना चाहिए। इस आपदा की घडी में हर नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह अपनी जिम्मेदारी को समझे ।     

शनिवार, 20 अप्रैल 2013

5 साल साल की मासूम बच्ची से बलात्कार : नैतिक संस्कारों का पतन


दिल्ली में 5 साल की मासूम बच्ची के साथ बलात्कार की घटना के बाद एक बार फिर देश में बवाल मच गया है । दिल्ली में लोग सडको पर उतर आए है तो देश के अन्य शहरो मे भी लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे है । बच्ची के साथ दरिदंगी इस हद तक हुई की मासूम के गुप्तांगों के जरिए मोमबत्ती व कांच के टुकडे पेट में पाए गए है । दिल रोने लगता है ऐसी दरिदंगी से । क्या हो रहा है हमारे देश में । जिस देश मे यत्र नारिश्य पूजन्यते रमन्ते तत्र देवता अर्थात जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता निवास करते है के श्लोक को अंगीकार किया जाता रहा है उस देश में नारी की यह दशा  जहॉ लोगो में चरित्र निर्माण के लिए ऐसे श्लोको को वाडग्मय में स्थान दिया गया आज वहॉ नारी सबसे बडी अबला इससे पहले 16 दिसम्बर को दामिनी के साथ गैगरेप  फिर दिल्ली की सडकों की कारों में गैगरेप । अपने ही मंगेतर के साथ गई बालिका के साथ मंगेतर के साथियो द्वारा बलात्कार । सगे भाई व बहन का पति पत्नी के रूप मे रहकर औलाद का होना । ये सब क्या है

       आप समझ रहे है ये क्यों हो रहा है  कौनसी सरकार इन सबको रोक पाएगी  कडे कानून क्या ऐसी घटनाओं को रोक पाएगे  अगर कानून बनाकर ही किसी सामाजिक बुराई को रोका जा सकता तो बाल विवाह तो होने ही नही चाहिए जबकि सच्चाई ये है कि शारदा एक्ट का जितना मखौल राजस्थान या देश के अन्य हिस्सो में उडता है उतना तो शायद किसी कानून का नहीं होता होगा । कडे कानून से ऐसी घटनाओं को कुछ हद तक कम तो किया जा सकता है लेकिन इसका समूल खात्मा नही किया जा सकता । हम इतने स्वार्थी हो गए है कि हमने अपनी हर अच्छी बुरी घटना के लिए सरकार को दोष देकर अपने कर्तव्यों की इति श्री कर रहे है अपने भीतर झांकने की फुरसत ही नही है और राजनीतिक विरोधी पार्टीयों ने तो जनता के इस मिंजाज को समझ लिया है और इस बहाने सत्ताधारी सरकार को घेरने को तत्पर रहती है । चाहे सरकार किसी भी दल की हो

       लेकिन क्या हमने कभी ऐसा सोचा है कि आखिर इन सब घटनाओं के पीछे मूल कारण क्या है  आज स्थिति यह है कि आरोपी ही भीड में शामिल होकर ऐसी घटनाओं के विरोध में खडा होकर प्रशासन एवं सत्ताधारी सरकार के नाकाम होने के नारे लगाता है राजनैतिक विरोधी दल सताधारी सरकार को घेरने को तत्पर रहते है लेकिन इसके मूल में झाकने की फुरसत किसी को नहीं । पिछले तीन चार माह की अवधि में देश में हुई इस तरह की घटनाओं को देखे तो इन सब के पीछे 15 से 35 साल की उम्र के युवको को ही दोषी पाया गया है । और यह भी देखने मे आ रहा है कि इन घटनाओं को रोकने के लिए होने वाले प्रदर्शनों में इसी आयु वर्ग के युवक बढ चढकर भाग ले रहे है । क्या आप कोई निष्कर्ष निकाल पा रहे है  कुछ समझ मे आ रहा है  पिछले  करीब 20 &-25 सालों कs बीच जो पीढी आई है वह मानसिक रूप से तो कुशाग्र है लेकिन इस पीढी के नौजवानो में  नैतिकता का अभाव बढ रहा है । इस पीढी के नवयुवक अपने मानसिक स्तर को तो काफी हद तक बढा चुके है लेकिन नैतिक स्तर पर उनका पतन भी हुआ है ।

       इसका कारण हमारी शिक्षा पद्धति में इन 20-&25 वर्षो में हुए परिवर्तन है जिसकी फसल हम अब काट रहे है जिसमें नैतिक मूल्यों को भूला दिया गया है । हमारी पीढी के लोगो को घर स्कूल में सबसे ज्यादा नैतिक मूल्यों की शिक्षा दी जाती थी। शिक्षक अपने हर उद्बोधन मे नैतिक मूल्यों को महत्व देते थे । पाठय पुस्तकों में ऐसे पाठो का समावेश होता था जिनमें शिक्षा के साथ साथ नैतिक मूल्यों पर बल अधिक होता था  घर  परिवार के बडे लोग कोई भी गलत काम करने पर इस तरह से उनके दुष्परिणामो से  अवगत कराते थे कि उनके परिणामों की कल्पना करके ही सिहर जाते थे और बालमन में इतना भय बैठ जाता था कि आज भी ऐसे गलत कामों की ओर ध्यान आकर्षित होते ही बुजुर्गों द्वारा सुनाए गए वे दुष्परिणाम मन को ऐसा न करने की सलाह  स्वतः ही दे देते है बचपन के वे संस्कार आज भी हमें किसी भी गलत काम को होने से रोक देते है जबकि अब हम सच्चाई जानते है लेकिन बचपन का वह मन पर पडा अंकन आज भी कायम है जब भी मन ऐसा कोई गलत काम करने को होता है तो हमारे मन मे कानून की बात नहीं आती अपने बुजुर्गो की वे बाते याद आती है जो हमे गलत कार्य करने पर होने वाले पाप से डराती थी । हमारी पीढी के लोगो को याद होगा जब हम बचपन में अपनी बहन से झगडते थे तो मां या दादी हमे यह पाठ पढाती थी कि बहन को मारने से पाप लगता है और जब हम कई दिनो बाद भी कहीं बाहर जाते थे तो रास्ते में मां या दादी बहन के उस झगडे वाली बात को याद रखते हुए रास्ते में जब कोई कांटेदार झाडी आती थी तो हमें यह सीख भी देती थी  कि जब बहन को मारते है तो ऐसा कांटेदार पेड बनना पडता है और बाल मन पर ऐसी छाप पड जाती थी कि मन में अपने आप यह विचार आने लग जाता कि बहन को मारना नही चाहिए और न ही झगडना चाहिए । बालमन पर पडे ऐसे कई संस्कार हमारी पीढी के लोगो को अपने स्कूल  घर और आसपास के वातावरण से मिले है ।

       लेकिन आज के वातावरण में हम बच्चों को मानसिक रूप से तो परिपक्व बनाने की शिक्षा दे रहे है और उसमें हमारी शिक्षा पद्धति सफल भी हुई है लेकिन हम जीवन के दूसरे महत्वपूर्ण नैतिक पक्ष को भूला बेठे है  पाठय पुस्तको से नैतिक मूल्यों को पोषित करने वाले अध्यायों को उतना महत्व देना भूल गए है जितना की उनको दिया जाना चाहिए और शायद सबसे बडा कारण भी यही है कि इसी  के अभाव में ऐसी घटनाओं की संख्या कडे कानून के बाद भी कम नही हो पा रही है । 16 दिसम्बर 2012 के बाद तो नया कानून लागू हो चुका है अगर कानून बनाने से ही ऐसी घटनाओं पर रोक लग पाती तो फिर तो 15 अप्रेल 2013 को 5 साल की मासूम बच्ची के साथ घटी घटना तो नहीं होनी चाहिए थी । या फिर चलती कार में गैगरेप नहीं होना चाहिए  मंगेतर के दोस्तो को तो कानून का डर होना चाहिए था । बल्कि उसके बाद तो ऐसी घटनाओं में और वृंिद्ध हुई है । इससे यह साबित होता है कि ऐसी घटनाओं को केवल कडे कानून से ही नही रोका जा सकता  बल्कि इसके लिए हमें भावी पीढी में नैतिक मूल्यों को बढाने वाले उन संस्कारों को पनपाना होगा जो एक स्वस्थ समाज की स्थापना में कारगर सिद्ध हो सके ।

       हर नागरिक को जागरूक होना होगा हमारे आस पास होने वाली हर घटना पर हमें नजर रखनी होगी  बच्चों में नैतिक मूल्यों को विकसित करने वाली ऐसी आदर्श स्थितियों के उदाहरण प्रस्तुत करने होगे जिससे उनके बालमन पर उसका गहरा असर हो ताकि वे कोई गलत काम करने से डरे हमारी शिक्षा पद्धति में मानसिक विकास को बढाने वाले प्रयोगो के साथ साथ नैतिक मूल्यों को बढाने वाली पाठ्य सामग्री का समावेश करना होगा । उसके लिए अनिवार्य रूप से कांलाशों की व्यवस्था करनी होगी ।मानवीय मूल्यो को पोषित करने वाले विषयोसंवेदनशीलता बढाने वाले तत्वो अनैतिक कार्यो से दूर रहने व उनके दुष्परिणामों आदि से भावी पीढी को अवगत कराना होगा तब कही जाकर आने वाले 20&-25 वर्षो के बाद ऐसी पीढी आएगी जिसमें मानसिक परिपक्वता के साथ साथ नैतिक मूल्यों का आदर करने वाले संस्कार समाहित होगे । अगर हमने देरी की तो जितनी देरी करेगे उतने वर्ष हम पीछे चले जाएगे । कितना आश्चर्य होता है कि अनैतिक कार्य करने वाला भी बडी बेशर्मी से उन आन्दोलन कारियों में शामिल होकर अपने को बचाने की कोशिश करता है । नैतिकता का इतना पतन तो  शायद ही कभी देखा गया हो कि दोषी व्यक्ति ही नैतिकता का चोला पहन कर बगुला भगत बनने की कोशिश करे

सोमवार, 8 अप्रैल 2013

राजस्थान में निः शुल्क स्वास्थ्य जांच योजना : एक अत्यन्त सराहनीय कदम


राजस्थान सरकार ने विश्व स्वास्थ्य दिवस 07अप्रेल 2013 से प्रदेश में मुख्यमंत्री निः शुल्क जांच योजना के नाम से प्रदेश की जनता के लिए सभी राजकीय मेडीकल कालेज एवं सम्बद्ध अस्पतालो में 57 प्रकार की जांचों व जिला उप जिला तथा सैटेलाईट अस्पतालों में 44 प्रकार की जांचों को निशुल्क करने की व्यवस्था की है । इससे पहले राजस्थान सरकार द्वारा  प्रदेश वासियों को सरकारी अस्पतालों में निःशुल्क दवाए उपलब्ध पहले से ही कराई जा रही है । स्वास्थ्य सेवाओं में इस तरह की सुविधाए जनता को बडी राहत देने वाली है इससे प्रदेश की जनता  बहुत ही राहत महसूस कर रही है ।

       जन कल्याणकारी सरकार का यह दायित्व है कि वह जनता को शिक्षा स्वास्थ्य व आवास जैसी मूलभूत सुविधाओं को उपलब्ध कराए जिसमें राजस्थान सरकार ने इन तीनों ही मूलभूत सुविधाओं की ओर ध्यान देकर प्रदेश की जनता को एक बडी सौगात दे दी है । शिक्षा के अधिकार कानून के तहत 6 से 14 वर्ष के सभी बालकों को निः शुल्क शिक्षा पुस्तकें व पोषाहार राज्य की सरकारी स्कूलों में पहले ही दिये जा रहे है । स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं में पहले तो राज्य सरकार ने निः शुल्क दवा वितरण योजना को लागू किया और अब विभिन्न प्रकार की जांचों को भी निः शुल्क करने की योजना लागू कर प्रदेश वासियों को स्वास्थ्य सेवाआं में भी मंहगी दवाओं के खरीदने व जांचों पर होने वाले बोझ को कम कर दिया है । जो कि एक अत्यन्त सराहनीय कदम कहा जा सकता है । राजस्थान देश का पहला ऐसा देश बन गया है जहॉ स्वास्थ्य सेवाएं निशुल्क है ।

       हर योजना का उदेश्य भले ही जनता के हितों को ध्यान में रखने का होता है लेकिन उसकी प्रभावी क्रियान्विति  ही जनता को उस योजना का सही लाभ दिलाती है । सरकार की मनसा बहुत ही जन कल्याणकारी है लेकिन जब तक इसकी सफल क्रियान्विति नहीं होती इसका लाभ जनता को पूरा नहीं मिल पाता । राजस्थान सरकार ने निः शुल्क दवा वितरण योजना को सफलता से संचालित किया है हांलाकि इनमें कई दूसरी और दवाओं को शामिल करने की जरूरत है फिर भी इससे आम जनता विशेषकर ग्रामिण एवं गरीब लोगो को इतनी राहत मिली है कि वे राज्य सरकार का मन ही मन आभार जता रहे है । जब निशुल्क दवा वितरण योजना नहीं थी तो इन्ही ग्रामिण व गरीब मजदूर वर्ग को बीमार होने पर कम से कम 300 रूपये की दवाईयां एक बार ही खरीदनी पडती थी जिससे उन पर भारी आर्थिक बोझ पडता था सरकार ने सभी  वर्ग को ऐसी राहत देकर मानो उन्हे मंहगाई से जूझने में थोडा सुकून दे दिया है

       कल से ही शुरू हुई मुख्यमंत्री निःशुल्क जांच योजना को फिलहाल जिला उपजिला व सेटेलाईट अस्पतालों में ही लागू किया गया है लेकिन आगामी 1 जुलाई 2013 से प्रदेश के सभी सामुदायिक अस्पतालों में 28 प्रकार की तथा 15 अगस्त 2013 से प्रदेश के सभी प्राथमिक स्वास्थय केन्द्रो व डिस्पेसरीज में 15 प्रकार की जांचे निः शुल्क शुरू की जानी है । वास्तव में राज्य सरकार ने बहुत ही सोच समझकर तीन चरणों में इसे लागू करने का निर्णय लिया है जो सराहनीय है ।

       लेकिन अगर सरकार ने इस पर थोडा और मंथन किया होता तो इसे बहुत प्रभावी ढंग से क्रियान्वित किया जाकर प्रारम्भ से ही जनता को व्यवस्थित रूप से जांचे कराने का अवसर मिल सकता था । हॉलाकि अभी इसके व्यवस्थित होने व जनता को होने वाली परेशानियो का दौर शुरू नहीं हुआ है। फिर भी लगता है कि कुछ परेशानियां उत्पन्न होगी जिन्हे उसी अनुरूप निपटा भी लिया जाएगा ।
प्रथम चरण के बाद द्वितीय चरण में कोई कमी नहीं रहे इसके लिए सरकार को अभी से ही प्रदेश के सभी सामुदायिक स्वास्थ केन्द्रों पर लिखी जाने वाली विभिन्न प्रकार की जांचों  की रिर्पोट तैयार करवानी चाहिए जिसमें प्रतिदिन आने वाले मरीजों की संख्या प्रतिदिन चिकित्सकों द्वारा लिखी जाने वाली जांचों का विवरण तथा इन केन्द्रों पर इन जांचों को करने के लिए तकनीकी कर्मचारियों की वर्तमान स्थिति  तथा भविष्य में जब इन केन्द्रों पर यह व्यवस्था शुरू होगी तो बढने वाले मरीजों का अनुमान  उसी अनुरूप चिकित्सक एवं पेरा मेडीकल स्टॉफ की व्यवस्था व जांच संबंधी उपकरण इन उपकरणों के रख रखाव व खराब होने पर इनकी मरम्मत करने वाले मेकेनिको की व्यवस्था पहले से ही कर दी जानी चाहिए ताकि जनता को परेशानी नहीं हो ।
प्रायः हमारी व्यवस्था में होता यह है कि या तो उपकरण नहीं होते और होते भी है तो खराब होने पर उसकी मरम्मत करने वाले मेकेनिक नहीं होने के कारण वे कई महिनों तक खराब ही पडे रहते है अथवा उपकरण होते हुए भी जांच करने वाले तकनीकीशियन नहीं होते जिसके कारण जनता को असुविधा होती है । और फिर अच्छी योजना का भी हश्र ऐसा होता है कि वह विरोध  व आक्रोश को उत्पन्न करती है ।  जनता सरकार को कोसती है जबकि थोडी सी सुव्यवस्थित क्रियान्विति सरकार को वाहवाही दिला देती है ।

       सरकार को चाहिए कि एक अच्छी योजना को जनता सर आंखों पर  ले इसके लिए जरूरी है कि थोडी सी मुस्तैदी बरती जाए  आवश्यक जांच संबंधी उपकरण उनके संचालन हेतु प्रशिक्षित तकनीशियन व चिकित्सक खराब होने की स्थिति में तुरंत उनकी मरम्मत करने हेतु मेकेनिक चिकित्सा उपकरणों के रख रखाव व मरम्मत करने में प्रशिक्षित ) तथा जांच के बाद कम से कम समय में रिर्पोट देने की व्यवस्था आदि ये ऐसे छोटे छोटे ध्यान देने वाले बिन्दु है जिन्हे व्यवस्थित कर जनता को खुश किया जा सकता है ।

       आपकी जानकारी के लिए उन जांचों की सूची नीचे दी जा रही है जो अब सरकारी अस्पतालो में निः शुल्क की जाएगी ।

 सरकारी मेडीकल कालेज एवं सम्बद्ध अस्पतालों में 57 प्रकार की निम्न जांचे अब निः शुल्क की जाएगी ।

 

Clinical  Pathology :  -           14 Types  Of  Investigaions:-

1.Hemoglobin Estimation  (Hb)                         2. Total Leukocycte Count(TLC)                    3. Differential Leukocyte Count  (DLC)             4. MP ( Sild Method)     5. ESR      6. Bleeding Time  (BT)          7. Cloting Time  (CT)        8. PBF                9. CBC 10. Blood Group  (ABO-RH typin)                  11. Total Eosinophil Count  (TEC) 12.Prothromobin Time Test INR                      13. Pleural Fluid Cell Count                         14. Ascitic  Fluid Cell Count


Bio Chemistry: -             25 Ttypes  Of  Investigations

1. Blood sugar         2. blood Urea           3. S. Creatinine              4. S. Bllirubin (T) 5. S, Billirubin (D)   6. SGOT                 7. SGPT            8. S. Alkaline Phosphatase 9. S. Total Protien    10. S.Albumin       11. S. Clacium   12. S. CK-NAC              13. S. CK- MB         14. S. LDH            15.S.Amylase     16. S. Uric Acid             17. S. Triglyceride    18. S. Electrolyte      19. S. VLDL     20. S. Total Cholesterol 21. S. Lipase             22. S. HDL             23. S. GGT          24. S. Phosphorous      25. CSF Protein Chloride & Sugar


Microbiology :-       11 types  Of   Investigations :-

1. S.CRP       2. VDRL Rapid Test        3. HIV Repid Test      4. Sputum for AFB  5. Widal Silde Test     6. Degue (Repid) Test                 7. Malaria by Carid Test    8. Rheumatoid Factor (RF)         9.ASLO                       10. HBsAg (Rapid) Test  11. Gram Staining


Urien  Analysis :-   03  types Of  Investigations :-

1. Urien Complete Exam.         2. Urien Pregnancy Test          3. Urien Microscopy


Stool  Analysis:-  01 Type Investigation

1. Stool for Ova and Cyst


Cardiology :-  01 Type  Investigation 

01. ECG

Radiology :- 02 Types  X -Ray

1. X-Ray   2. Sonography

 


सभी जिला उप जिला तथा सैटेलाईट अस्पतालों में 44 की तरह की निम्न जांचे निशुल्क होगी 



Clinical  Pathology :  -           11 types  Of  Investigaions:-

1.Hemoglobin Estimation(Hb)                           2. Total Leukocycte Count(TLC)                    3. Differential Leukocyte Count (DLC)             4. MP ( Sild Method)     5. ESR      6. Bleeding Time (BT)          7. Cloting Time (CT)        8. PBF                9. CBC 10. Blood Group (ABO-RH typin)                    11. Total Eosinophil Count (TEC)



Bio Chemistry: -             16 types  Of  Investigations

1. Blood sugar         2. blood Urea           3. S. Creatinine              4. S. Bllirubin (T) 5. S, Billirubin (D)   6. SGOT                 7. SGPT            8. S. Alkaline Phosphatase 9. S. Total Protien    10. S.Albumin       11. S. Clacium   12. S. CK-NAC              13. S. CK- MB         14. S. LDH            15.S.Amylase     16. S. Uric Acid



Microbiology :-       10 types  Of   Investigations :-

1. S.CRP       2. VDRL Rapid Test        3. HIV Repid Test      4. Sputum for AFB  5. Widal Silde Test     6. Degue (Repid) Test                 7. Malaria by Carid Test    8. Rheumatoid Factor (RF)         9.ASLO                          10. HBsAg (Rapid) Test 



Urien  Analysis :-   03  types Of  Investigations :-

1. Urien Complete Exam.         2. Urien Pregnancy Test          3. Urien Microscopy



Stool  Analysis:-  01 Type Investigation

1. Stool for Ova and Cyst



Cardiology :-  01 Type  Investigation 

01.  ECG

Radiology :- 02 Types  X -Ray

1. X-Ray   2. Sonography