मंगलवार, 26 मार्च 2013

बीकानेर की होली & रम्मतों व स्वांगो की धमाल


वैसे तो होली का त्यौहार पूरे देश मे मनाया जाता है । होली तो बरसाने की प्रसिद्व है लेकिन हर शहर व जगह की अपनी अलग अलग परम्पराए होती है जो स्थानीय होली को रंगबिरंगी बनाती है । होली त्योहार है मौज मस्ती का । लोग अपने गिले शिकवे भूलाकर होली के रंग में ऐसे रंग जाते है कि उन्हे फाल्गुनी होली के रंग माहौल और मौसम दोनों को खुशनुमा बना देते है ।

       राजस्थान मे होली का त्यौहार सभी वर्ग के लोगो द्वारा मनाया जाता है लेकिन स्थानीय परम्पराए इस त्यौहार को एक ऐसा रंग देती है कि लोग उसके निर्वहन में ही आंनन्दित होते है । ऐसी ही होली बीकानेर में रेगिस्तानी धोंरो के इस शहर में इस तरह मनाई जाती है कि होलाष्टक के बाद पूरा शहर ही मानों होली के रंग में रंग जाता है । हर छोटा बडा इस त्यौहार को अपने शहर की परम्परा के साथ मनाता नजर आता है ।  वैसे तो बीकानेर में फाल्गुन के प्रारम्भ होते ही लोग होली के रंग में रंग जाते है लेकिन होलाष्टक लगने के बाद तो लोगों की मस्ती इतनी परवान चढ जाती है कि फिर कोई भी कुछ भी मस्ती करें तो वह होली की मजाक में गिनी जाती है यही नहीं इन दिनों की जाने वाली हर मजाक  होली का पुट लिए होती है और लोग भी इसका भरपूर आंनद लेते है ।

       बीकानेर में होली का त्यौहार होलाष्टक लगने के साथ ही शुरू हो जाता है । सर्वप्रथम बीकानेर के शाकद्वीपिय समाज के लोग बीकानेर स्थित मॉ नागणेचेजी के मंदिर में होलाष्टक फाल्गुन सुदी सप्तमी के दिन (खेलणी सप्तमी ) देवी  को होली खिलाते है तथा फाल्गुनी गीतों की शुरूआत करते है । पहली गैर शाकद्वीपिय समाज के लोग नागेणचेजी मंदिर से  माता को होली खेलाकर गोगागेट क्षेत्र में आते है और वहॉ से गैर (जुलूस) के रूप में प्रारम्भ होकर शहर में प्रवेश करते है । यह पहली गैर (जुलूस) होती है जो बीकानेर शहर में  होली के रंगों का प्रवेश कराती है  यह परम्परा रियासत काल से चली आ रही है । जिसे शाकद्वीपिय समाज के लोग आज भी परम्परागत रूप से मनाते चले आ रहे है।

       इसी दिन से बीकानेर शहर में होली की धमाल का बाकायदा  परम्परागत रूप से आगाज होता है  दिनो दिन बढती होली की धमाल में धार्मिक समसामयिक राजनैतिक फैशन व अन्य समस्याओं पर व्यगंत्मक व हास्यात्मक गीतों  के रूप में  जोडकर कर प्रस्तुत किया जाता है । 

       होलाष्टक के दिन ही शाम को शहर के विभिन्न स्थानों पर थंभ पूजन के साथ विभिन्न मौहल्लों व चौकों में होली के रसिक चंग की थाप पर झूमते हुए देखे जा सकते है । मुख्य रूप से चौथाणी ओझाओं के चौक लालाणी व्यासों का चौक किकाणी व्यासों का चौक सुनारों की गुवाड आदि कई स्थानों पर थंभ पूजन के साथ होली के रंगों की शुरूआत होती हैं । जिसमें रम्मतों धमालों का श्री गणेश हो जाता है ।

       रम्मतों का दौर

       होलाष्टक के दिन से ही बीकानेर में रम्मतों का दौर शुरू हो जाता है । सबसे पहले इसी दिन होलाष्टक के दिन ही नत्थूसर गेट के अन्दर फक्कडदाता की रम्मत व बिस्सों के चौक में नोटंकी शहजादी की रम्मत होती है ।

शहजादी नोटंकी का खेल  & बिस्सों का चौक (फाल्गुन सुदी सप्तमी)

       बिस्सों के चौक में होने वाली शहजादी नोटंकी का खेल देवर भाभी की अठखेलियों पर आधारित होता है । रमणा सा बिस्सा की स्मृति में खेला जाने वाला यह खेल रात को 12 बजे आशापुरा मांताजी के अवतरण के साथ प्रारम्भ होता है । इस खेल में भाभी अपने देवर को ताने मारती है जिसका जबाव देवर देता है । हास्य व्यंग से सरोबार यह खेल देखने वालों कों हंसा हंसा कर लोटपोट कर देता है । रात भर चलने वाला यह खेल सुबह समाप्त होता हैं तब तक रसिकों के पेट में हंस हंस कर बळ पड जाते है । इसकी तैयारी कलाकर इसके शुरू होने के कई दिनों पहले से ही करना शुरू कर देते हैं ।

फक्कडदाता  की रम्मत  & नत्थूसर गेट के अन्दर (फाल्गुन सुदी सप्तमी)

 

       एक तरफ बिस्सों के चौक में नोटंकी शहजादी का खेल चल रहा होता है तो दूसरी तरफ रात 2 बजे से नत्थूसर गेट के अन्दर फक्कडदाता  की रम्मत का आगाज होता है । स्व फक्कड बिस्सा की स्मृति में खेली जाने वाली यह रम्मत हास्य व श्रृगांर रस से सरोबार होती है । नायिका के श्रृगांर का वर्णन कलाकार ऐसे प्रस्तुत करते है कि फाल्गुनी बयार बहने लगती है श्रृगांर के साथ साथ हास्य रस के गुबार दर्शकों को रात भर बांधे रखते है । जरूरत होती है तो केवल कलाकारों के साथ  श्रृंगार व हास्य रस में डूबने की और फिर तो पता ही नहीं चलता कि कब सवेरा हो गया । यह रम्मत डेढ सौ सालों से खेली जा रही है । 

       बीकानेर शहर होली के दिनों में रम्मतों का शहर हो जाता है हर गली नुक्कड पर कोई न कोई धमाल होता ही रहता है । हम यहॉ बीकानेर की केवल बहुत प्रसिद्ध रम्मत व स्वांगों का ही उल्लेख कर रहे हैं, हर गली और नुक्कड की धमाल की चर्चा की जाना संभव नहीं है । 

       स्वांग मेहरी ख्याल व चौमासा रम्मत  & कीकाणी व्यासों का चौक (फाल्गुन सुदी एकादशी)

 

       बीकानेर शहर के कीकाणी व्यासों के चौक मे जमनादास कल्ला की स्वाग मेरी ख्याल व चौमासा रम्मत का आयोजन फाल्गुन सुदी ग्यारस को किया जाता है । इस रम्मत में कलाकार श्रृंगार विरह रस नायक नायिका वर्णन सहित वर्तमान विषयों पर अपने व्यंगात्मक व हास्यात्मक ख्याल प्रस्तुत करते है । चौमासा वर्णन में नायक नायिका का पहले मिलन का वर्णन जहॉ श्रृगार रस को अवतरित करता है तथा दर्शकों में सिरहन पैदा करने वाला होता हैं वही बाद में नायक का नायिका को छोडकर कर परदेश चले जाने पर नायिका द्वारा विरह  रस का करूण वर्णन दर्शकों को भी विरह ज्वाला मे जलने को मजबूर कर देता है यह रम्मत भी रात भर चलती है । इस रम्मत का भी पराम्परागत रूप से करीब 250 &300 सालों से निर्वहन पीढी दर पीढी किया जा रहा है । 

हर्षो -व्यासों का डोलची मार खेल & हर्षो -व्यासों की ढाल (फाल्गुन सुदी द्वादशी )

       बीकानेर में हर्षो - व्यासों का डोलची मार खेल होली की करीब 300 साल पुरानी परम्परा है । इसमें हर्ष और व्यास जाति के लोग एक दूसरे को पानी से भरी डोलची मारते है । यह आपसी सौहार्द का खेल है । इसकी परम्परा की शुरूआत हर्षो व व्यासों के बीच किसी कारण से हुए मनमुटाव को दूर करने के लिए तथा इन दोनों जातियों में पुन सौहार्द कायम करने के लिए हुई  तभी से इसे एक परम्परागत रूप से आज भी इसे खेला जाता है । यह खेल फाल्गुन सुदी द्वादशी को दिन के समय खेला जाता है। इससे पहले व्यास जाति के लोग गैर के रूप में निकलते है । और फिर हर्षा के चौक व व्यासों के चौको के बीच स्थित ढाल के पास पहुचते है जहॉ इन दो जातियों द्वारा यह खेल ख्ेला जाता है।  इस खेल को देखने के लिए पूरे शहर से लोग यहॉ इकठठा होते हैं 

फाल्गुनी फुटबॉल & पुष्करणा स्टेडियम (फाल्गुन सुदी द्वादशी)

       बीकानेर शहर में फाल्गुनी फुटबॉल का मैच होली के रंग को और भी मस्ती भरा बना देता है । फाल्गुन सुदी 12 को पुष्करणा स्टैडियम में शाम को खेले जाने वाले इस फुटबॉल मैच में मैच कम और स्वांग बने होली के रसिकों की मस्ती देखने लायक होती है । होली के रसिक विभिन्न स्वांग बनकर  फुटबॉल मैच खेलने पहुचते है । कोई राजनेता की वेश भूषा में आता है तो कोई देवी देवता बनकर  तो कोई नारी का वेष बनाकर आता है तो कोई फटेहाल । ये मजा तो उस मैच को देखकर ही आता है कि यहॉ कोई मैच खेलने या जीतने नहीं बल्कि होली की मस्ती में सरोबार होने व दर्शकों को इस मस्ती में मस्त होने को मजबूर करने के लिए ही आता  है । क्योंकि यहॉ कोई अपनी टीम पर गोल करने की मूर्खता करता है तो कोई फुटबॉल को हाथ में पकडकर भागंता नजर आता है । गोलकीपर  गोल छोडकर फंरट लाईन का खिलाडी बन बैठता है तो एंपायर खुद ही खेलने लग जाता है । स्वांग बने रसिक दर्शको को खिलखिलाने पर मजबूर ही नहीं करते बल्कि पेट के बल बैठने को विवश कर देते है ।

चंग पर धमाल & जस्सूसर गेट

       फाल्गुनी फुटबॉल का मजा लेकर बीकानेर के होली के रसिक घर पर शाम का खाना खाने जितना समय ही अपने पास रख सकते है  क्योंकि इसके बाद इन रसिकों को जस्सूसर गेट पर होली के चंग की थाप पर थिरकने का मौका मिलता है । यह परम्परा कोई ज्यादा पुरानी नहीं है  हॉलाकि यह चंग की धमाल पिछले करीब 25&-30 सालों से चल रही है लेकिन इसे विस्तृत व व्यवस्थित रूप अभी पिछले 7&-8 सालों से ही मिला है । यहॉ पर बीकानेर जिले के चंग बाज अपनी चंग की धमाल की थाप से लोगों को होली के रंग में रंगने व थिरकने को मजबूर कर देते है । विभिन्न टोलियों में पहुचते चंगबाज बाकायदा हार जीत के लिए मंच पर प्रस्तुति देते है । सर्वश्रेष्ठ तीन चंगबाज टोलियों को पुरस्कृत किया जाता है । यहॉ दर्शकों को अपना स्थान पहले ही रोक लेना पडता है अन्यथा दूर से ही लुफत लेना पडता है । बीकानेर शहर का हर होली रसिक यहॉ पहुचता ही है इसके अलावा विभिन्न गलियों की चंगबाजों की टोलियॉ तो यहॉ दिखाई दे ही जाती है । ऐसी टोलियॉ देर रात तक अपने चंग की थाप अपनी गली नुक्कड पर मदमस्त करती ही है ।

अमर सिंह राठौड की रम्मत & आचार्या को चौक  (फाल्गुन सुदी द्वादशी)

       बीकानेर की रम्मतों में अमरसिंह राठौड की रम्मत का अपना अलग ही स्थान है । यह रम्मत फाल्गुन सुदी द्वादशी की मध्य रा़ित्र से आचार्यो के चौक में राय भवानी के अवतरण से शुरू होकर अमरसिंह राठौड के  चरित्र पर आधारित है । यह रम्मत वीर रस से ओतप्रोत होती है जिसमें विभिन्न चरित्रों के माध्यम से वीर रस के साथ साथ बीच बीच हास्य रस का समावेश होता है जो दर्शको को हंसाने व गुदगदाने के लिए पर्याप्त होता है । बीकानेर के लोग रात भर इस रम्मत का लुफ्त लेते है जो सुबह करीब 9 बजे तक चलती हैं । अमर सिंह की भूंिमका जींवत करता कलाकार जहॉ मुख्य पात्र होता है वहीं साथी कलाकार उसके इस चरित्र को मजबूती प्रदान करते हैं । रम्मत में सांजिदे जहॉ कलाकारों को सुर में रखने का साथ देते है तो टेरिये कलाकारों को सम्बल देते है । वीस रस की इस रम्मत में बीकानेर के लोग अपने नवजात शिशुओं को अमरसिंह के आर्शिवाद के लिए नवजात के सिर पर अमर सिंह के हाथ फिराने हेतु कतार में खडे नजर आते है इसके  पीछे उद्देश्य ये नजर आता है कि नवजात शिशु बडा होकर अमरसिंह की तरह बने । बोहरा बोहरी  जाट जाटनी और अन्य हास्य कलाकार बीच बीच में दर्शकों को हंसाते रहते है ।

हडाउ मेरी की रम्मत  &  मरूनायक चौक  (फाल्गुन सुदी द्वादशी)

       एक तरफ आचार्या के चौक में अमर सिंह राठौड की रम्मत चल रही होती है तो उसी के सटे मरूनायक चौक में हडाउ मेरी की ख्याल चौमासों से सरोबार रम्मत में नायक नायिका के मिलन और फिर उनके बिछुडने पर विरह से दक्त नायिका का हाल दर्शकों को इतना प्रभावित करता है कि उसकी दाद तो मिलती ही है । राय भवानी के अवतरण से शुरू होने वाली हडाउ म्हेरी की रम्मत में कलाकार अपनी अदाओं के साथ साथ अपनी ओजस्वी वाणी से भी लोगों को होली के रंग में रंगने कों मजबूर कर देते है । साथ में ताल ठोकते सांजिदें जहॉ प्रेम व विरह रस को उकरेते नजर आते है वहीं टेरिये कलाकारों को होसला अफजाई में साथ देते हैं   । यह रम्मत भी अगले दिन सुबह तक चलती है। रात भर दर्शक इन रम्मतों का आनन्द लेते है। रम्मतों के इस शहर में होली का त्यौहार रम्मतों व स्वागां के त्यौहार के रूप में मनाया जाता है ।

       इसके अलावा शहर के हर मौहल्ले मे होलाष्टक से ही कोई न कोई कार्यक्रम आयोजित किया ही जाता रहता है जिसमें सुनारो की गुवाड में डांडिया नृत्य आयोजित किया जाता है जिसमें स्त्री पुरूष दोनो ही डांडियां की धूम मचाते है । बांठियों के चौक में हास्य रंग की बयार आयोजित होती है तो गिन्नाणी व खतूरिया कालोनी में भी होली के रंग देखे जा सकते है ।

होली&

       होली के दिन तो गैरिये दिन भर हुडदंग मचाते हुए पूर शहर की परिक्रमा लगाते है तो उनी मेहमान नवाजी में जगह जगह लोग उनके लिए खाने पीने का इंतजाम करते है  रात्री में होलिका दहन पूरे शहर में मुर्हुत के अनुसार होता है । शहर के बारह गुवाह साले की होली पर होलिका दहन का नजारा कुछ अलग ही होता है ।होलिका दहन के अवसर पर नव विवाहित जोडों द्वारा होलिका का पूजन किया जाता है तथा गैरियों के होली गीत इन नवविवाहित दम्पतियों को प्रेम रस हेतु उत्साहित करते है जिससे वे अपना नया गृहस्थ जीवन पूरे जोश व उत्साह से प्रारंभ करने को प्रोत्साहित होते है

धुलंडी&

       धुलंडी के दिन तो पूरे शहर में हर वर्ग की गैर (जुलूस ) का  आयोजन किया जाता है । हर गली व मौहल्ले की अपनी गैर होती है जिसमें उस मौहल्ले के लोग एक साथ होली का आंनद लेते है। सबसे अधिक लोग नत्थूसर गेट पर आयोजित होने वाली तणी तोडने की रस्म  देखने को उमड पडते है वहीं पर शहर के होली रसिकों का जमावडा होता है और फाल्गुनी गीतों की प्रतियोगिता का आयोजन होता है जिसमें हजारों दर्शकों के बीच होली के रसिका अपनी प्रस्तुतियॉ देते है ।शाम तक रसिक इसका लुफ्त उठाते हैं