हमारे देश मे आगामी अप्रेल मई 2014 में सोलहवीं लोकसभा
के लिए चुनाव होन जा रहे है । सभी राजनीतिक पार्टीया इन चुनावों में अपने
उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतार रही है । क्षेत्रीय पार्टीयां भी अपने उम्मीदवार
खडे करेगी। लोकसभा में पूर्ण बहुमत के लिए अपनी सरकार बनाने के लिए 272 सीटों पर अपने उम्मीदवारो
की जीत पक्की करना जरूरी है तभी वह अपनी पार्टी की सरकार बनाने में सफल हो सकेगी ।
लेकिन क्षेत्रीय पार्टीयां तो इतने उम्मीदवार ही चुनाव मैदान में नहीं उतारती तो
ये तो निश्चित है कि उनकी सरकार तो बन नहीं सकती फिर भी वह मतदाताओं को बडे बडे
वादे कर ताल ठोकती है । क्या यह सही है कि जो पार्टी पूर्ण बहुमत की न्यूनतम सीटों
के लिए भी अपने उम्मीदवार खडे नहीं करती वह मतदाताओं को लोक लुभावन वादे कर जनता
को गुमराह करे। जब वे अच्छी तरह जानती है कि वे सरकार अपने बूते पर नहीं बना सकती
। तो ऐसे मे जनता को यह कौन समझाने की कोशिश करें कि जो पार्टी दिवा स्वप्न दिखा
रही है वह खुद जानती है वह जनता से किए वादे पूरे करने की स्थिति में नही आ सकती।
तो ऐसे मे जनता को सही रास्ता व सही स्थिति दिखाने का उन्हे जागरूक करने का
दायित्व किसका होना चाहिए ताकि जनता
जागरूक होकर अपनी सरकार बना सके ।
ये
तो निश्चित है कि क्षेत्रीय पार्टीयां तो ये सच जनता को बताने से रही कि केन्द्र
मे वह अपने बूते सरकार बनाने की स्थिति में नही
है । ऐेसे में मीडिया और लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए कार्य करने वाली
संस्थाओं का यह दायित्व है कि वह इन क्षेत्रीय दलो की सही तस्वीर जनता के सामने रखे और उसे बताएं कि
ऐसे क्षेत्रिय दलों से केन्द्र की सरकार नही बनाई जा सकती । यदि जनता ने उन्हे
चुना तो वे केन्द्र में जाकर किसी बडे दल के साथ जोड तोड करेगी और इससे लोकतंत्र
मजबूत नहीं कमजोर होगा । क्योकि इससे जिस भी बडे दल को स्पष्ट बहुमत अर्थात् 272 सीटो का बहुमत नही
मिलेगा वे इन क्षेत्रीय दलो से समझोैते करेगे और इससे सांसदों के खरीद फरोख्त होने की संभावनाएं
बलवती होगी । इसलिए अच्छा यही है कि मीडिया और लोकतत्र को मजबूत करने वाले संगठनों
का यह नैतिक कर्तव्य है कि वह पूरी निष्पक्षता से राज्यों के क्षेत्रीय दलों की
स्थिति उस राज्य की जनता के सामने रखे तथा उन्हे बताएं कि संबंधित राज्य की पार्टी
ने लोकसभा चुनाव में कुल कितने उम्मीदवार उतारे है और इस संख्या बल पर वह अपनी
सरकार बनाने की स्थिति मे नहीं हो सकती है इसलिए अच्छा तो यह होगा कि आगामी लोकसभा
चुनावों में ऐसे पार्टी के उम्मीदवार को समर्थन दे जिसकी पार्टी केन्द्र में अपनी
सरकार बनाने की स्थिति में हो सकती है ।
डी
एम के व ए आई डी एम अकाली दल राजद रालोद
राजपा जद शिव सेना एन सी पी बसपा लेफ्ट फन्ट टी एम सी के सहित जो क्षेत्रीय
दल है जो लोकसभा में स्पष्ट बहुमत के लिए आवश्यक 272
उम्मीदवार ही चुनाव में खडे नही करते ऐसे में इन
दलों की केन्द्र में सरकार अपने बूते तो आ ही नहीं सकती । ऐसे मे ये दल केन्द्र
में किसी बडे दल के साथ जाएंगे इससे अच्छा तो यह है कि इन क्षेत्रीय दलों के मतदाता
ऐसी पार्टी के उम्मीदवारों का चयन करे जिनके दल की सरकार स्पष्ट बहुमत से बननी
संभव हो सके । देश में स्वस्थ लोकतंत्र के लिए ये जरूरी है कि अब गठबंधन की
सरकारों का दौर समाप्त होना चाहिए । 1989 के बाद एक ऐसी परम्परा हो गई है कि किसी भी दल को स्पष्ट
बहुमत नही मिल पा रहा है गठबंधन की सरकारे अपनी सरकार को बचाने मे ही पांच साल
निकाल देती है और विकास के मुद्दे पीछे ही रह जाते है इसलिए देश मे लोकतंत्र की
मजबूती और समग्र विकासस के लिए एक स्पष्ट बहुमत वाली सरकार का केन्द्र में होना
जरूरी है तभी देश प्रगति कर सकेगा । इसलिए देश के जागरूक मीडिया की यह जिम्मेदारी
है कि वे राज्यों की जनता को यह बतावें कि क्या जिन दलों को आप समर्थन देने का
मानस बना रहे है वे सरकार बनाने में सक्षम भी है । उनकी स्थिति क्या रह सकती है ।
अगर वे आपके समर्थन के बाद भी सरकार नही बना सके तो इससे अच्छा तो यह है कि वे
शुरू से ही ऐसे उम्मीदवार को लोकसभा के लिए निर्वाचित करे जो स्थायित्व दे सके ।