शनिवार, 22 जून 2013

उतराखण्ड में यात्रियों को निकालने की कवायद


उतराखण्ड में यात्रियों को निकालने की कवायद जिस तरीके से की जा रही है उससे नहीं लगता कि आने वाले 48 घंटों में वहॉ फंसे करीब 50 हजार लोगों को निकाला जा सकेगा । आपदा प्रवन्धन के नाम पर उतराखण्ड में कुछ भी इन्तजाम नहीं दिखाई दे रहे । वहॉ की व्यवस्था तो भगवान भरोसे ही चल रही थी जिसका भण्डाफोड तो भारी बारिश व बाढ जैसी इस प्राकृतिक आपदा के आने के बाद ही लोगो को हो सकी । जबकि सच्चाई ये है कि वहॉ प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु पूरे देश भर से जाते हैं  और यही नहीं प्रति वर्ष कोई न कोई रास्ता भारी बारिश व बाढ की वजह से बंद होता ही है । लेकिन इस बार सभी रास्ते बंद होने व काफी श्रद्धालुओं का वहॉ फसे होने के कारण पूरे देश का ध्यान इस ओर गया यही नहीं केदारनाथ की भारी तबाही ने ही उतराखण्ड सरकार की आपदा प्रबन्धन की पोल खोल कर रख दी ।

       उतराखध्ड सरकार को यह जानकारी ही नहीं है कि ऐसे दुर्गम पहाडी स्थानों पर भारी बारिश की वजह से कहां कहां पहाड गिर सकते है यदि उसे जानकारी होती तो आज 6 दिन बाद भी यह स्थिति नहीं होती  और करीब 50 हजार लोग निकलने के लिए तडप नहीं jgs होते  उनको रेस्क्यू करके अब तक निकाल लिया गया होता । लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि लोग भटकते भटकते स्वयं ही  पहुंच रहे है जहॉ उन्हे सेना की मदद मिल रही है स्थानीय प्रशासन व सरकार की ओर से कोई व्यवस्थाए नहीं है ये सब टी वी पर लोगो को बोलते हुए दिखाया जा रहा है । लोगो को 6 -6 दिनों से खाना पानी व दवाईयां नहंी मिली है इसका अर्थ ये है कि उतराखण्ड सरकार व प्रशासन को ये आभास ही नहीं है कि लोग कहां कहां फंसे हो सकते है और उनको कैसे निकाला जा सकता है ।

       सेना ने कमान 4 दिन बाद संभाली है तब पता चला है कि लोग कितने परेशान है । बुर्जुग बच्चे महिलाएं कैसे खाने पानी को तरस रहे है । स्थानीय लोग श्रद्धालुओं की मजबूरी का फायदा उठाकर किस तरह पानी की एक बोतल के  50 रू तक वसूल रहे है । जिन लोगों के पास नकदी पैसा है वे तो इन मुंहमांगी किमतों को अपनी जान बचाने के लिए भुगतान कर रहे है लेकिन उन लोगो के बारे में सोचकर ही रूह कांप उठती है जिन लोगो के रिश्तेदार इस बाढ में बह गए और जिनके पास कुछ भी नहीं बचा वे कैसे जी पांए होगे ।

       लगता है उतराखण्ड सरकार  व प्रशासन के साथ साथ  वहां के लोगों की भी मानवीय संवेदनाएं समाप्त हो गई है जो इस आपदा में उनके ही प्रदेश में फंसे लोगों की सहायता के बजाय उनसे मुंहमांगी वसूली करने पर आमदा है । एक तरफ जहां पूरा देश इस संकट की घडी में बाढ में फंसे श्रद्धालुओं की कुशलक्षेम के लिए हरसंभव सहायता व दुआएं कर रहा है वहीं दूसरी तरफ उतराखण्ड के लोग श्रद्धालुओं के लिए अपने द्वार खोलने की बजाय उनसे जीवन रक्षक पानी व खाने की चीजों की मुंहमागी वसूली कर रहा है । इससे ज्यादा अमानवीय  व संवेदनहीन बात क्या हो सकती है ।

       उतराखण्ड की सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग के पास ऐसी आपदा से निपटने के लिए कोई कार्ययोजना ही नहीं है । कितना आश्चर्यजनक है कि पहाडों में होने वाली आपदाओं के बारे में इस विभाग के  कोई  तंत्र ही विकसित नहीं किया  तो फिर उनसे निपटने की कार्ययोजना कैसे बनती । यदि कोई तंत्र विकसित होता तों 7 दिन बाद भी लोग इस तरह फंसे हुए व खाने पानी व दवाईयों के लिए तरस नहीं होते।  5 दिन तक तो स्थानीय प्रशासन अपने स्तर पर देश को यह आश्वासन देता रहा कि  शीघ्र ही फंसे लोगो को निकाल लिया जाएगा । लेकिन जब 5 दिन बाद भी स्थानीय प्रशासन  व प्रदेश की सरकार द्वारा लोगों को नहीं निकाला जा सका तो सेना की मदद ली गई जबकि सेना को तुरन्त ही बुला लिया गया होता तो काफी लोगों की जान बचाई जा सकती थी तथा इतने दिनों से फंसे लोगो को उनके घरो तक पहुंचाया जा सकता था । कितने दुख की बात है कि स्थानीय प्रशासन व सरकार ने पूरी ईमानदारी से अपनेबदइन्तजामात      का खुलासा नहीं किया जिसके कारण हजारों लोगों को अपनी जान पर खेलना पड रहा है ।

       अब फिर वहां बारिश होने की चेतावनी जारी की गंई है सेना के पास केवल 48 घंटे है और 50 हजार लोगो को निकाला जाना अभी बताया जा रहा है । देहरादून व ऋषिकेश में आज सुबह से ही रूक रूक कर बारिश होने के समाचार है जिसके कारण बचाव कार्य में उतनी तेजी नहीं आ पा रही है जितनी की जरूरत है ।

       ऋषिकेश से गंगोत्री व यमुनोत्री के मार्ग पर करीब 32 हजार श्रद्धालु फंसे हुए है । इस मार्ग पर यमुनोत्री के पास खरसाली में करीब 4000 हजार लोग तो उतरकाशी में 6000 हजार लागबगड में करीब 5800 टिहरी में 3000 हजार श्रीनगर में 8000 हजार तो ऋषिकेश में करीब 5000 हजार लोग अपने घरों को जाने की राह ताक रहे है । 

       श्रीनगर से केदारनाथ मार्ग पर करीब 5500 श्रद्धालुआं के अभी भी फंसे होने की जानकारी है । अकेले गौरीकुण्ड मे 3500 लोग अभी भी  निकाले जाने की बाट जोह रहे है जबकि गुप्तकाशीं में भी 2000 लोग अटके हुए बताए जाते है ।

       रूद्र प्रयाग से बद्रीनाथ जाने वाले मार्ग पर भी करीब 11000 हजार लोग फंसे हुए बताएं जा रहे है जिसमें चमोली में 7000 हजार गोंिबदघाट मे 3500 व बद्रीनाथ में भी सैकडों लोग अपने घरों को लौटने का इंतजार कर रहे है ।

       हेमकुण्ड साहिब मे भी अभी तक करीब 2000 लोग फंसे हुए है ।

       भारतीय वायुसेना उसी स्थिति में फंसे लोगो को निकालने मे कामयाब हो सकती हे जबकि मौसम साथ दें । यदि मौसम ने साथ नहीं दिया तो और परेशानी हो सकती  है । रेस्क्यू आपरेशन में लोगों को निकालने के साथ साथ जहॉ लोग फंसे है वहॉ पूरी रसद पहुंचाना भी काफी जरूरी है ताकि यदि मौसम साथ नहीं दे तो कम से कम वहां फंसे लोगों को खाना पानी व दवाईया तो मिल सके । यदि एक दो दिन मौसम साफ नहीं हो तो पिछले हफ्ते भर से पानी खाने व दवाईयों को तरसते लोगों को एक बार फिर परेशान नही होना पडें ।  ईश्वर ना करें कि फिर कोई आपदा आएं लेकिन मौसम के मिजाज का कोई भरोसा नही कब क्या हो जाएं इसलिए इंतजाम तो जरूरी है ।

       इसके अलावा जैसा कि मौसम विभाग ने चेतावनी दी है कि 2425 जून को उतराखण्ड के इन पहाडी इलाकों में फिर बारिश हो सकती है इसलिए सेना इस अवधि में 50 हजार लोगों को निकाल पाएगी इसमें सशंय दिखाई पडता है इसके लिए ये जरूरी है कि यदि सेना को रेस्क्यू आपरेशन में कोई परेशानी हो भी तो कम से कम इतने दिनों से पीडा झेल रहे यात्रियों को अब कोई दुख नही झेलना पडें । डन्हे सुरक्षा का ऐसा आभास हो कि अब वे सुरक्षित है और अगर कोई आपदा आई भी तो सेना हमें बचाने में सक्षम है । सुरक्षा से ज्यादा सुरक्षा का अहसास  लोगो को काफी राहत दे सकता है ।

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