राजस्थान मे विद्यालयो का समय आगामी 1 अक्टूबर 2011 से सुबह साढे आठ बजे से शाम 4 बजे तक किया जा रहा है । शिक्षा का अधिकार कानून की व्यवस्था अनुसार ऐसा किया जा रहा है ऐसा सरकार का कहना है । शिक्षा में इस तरह के प्रावधानो को लाने का तात्पर्य यह है कि या तो हमारे नीति निर्धारको को बाल मनोविज्ञान का भान नही है या ये लोग जान बूझकर बाल मनो विज्ञान की अनदेखी कर रहे है ।
विद्यालयो का समय बढाने के पीछे तर्क ये दिया जा रहा है कि सामान्य छात्रो को तो विद्यालयो मे हमेशा वाले समय ही रहना होगा लेकिन जिन छात्रो ने इस वर्ष घर मे रहकर पढने बाबत जानकारी देकर प्रवेश लिया है अथवा जो छात्र कमजोर है उनको इस अतिरिक्त समय मे पढाया जायेगा । यानि अतिरिक्त कालांश देकर उन्हे इस लायक बनाने का प्रयास किया जाएगा कि वे सामान्य छात्रो के स्तर तक आ जाए । देखने व सुनने मे यह बहुत ही अच्छी योजना दिखती है लेकिन व्यावहारिक रूप से इसे बाल मनौविज्ञान के विपरीत ही कहा जाएगा।
क्या कहता है बाल मन
बाल मनो विज्ञान कहता है कि बालक के सीखने की प्रक्रिया स्वाभाविक एवं मनोरंजक दायी होनी चाहिए । जब बालक का मन हो तभी उसे पढाया जावे तो अधिगम आसान होता है । बालक खेल खेल मे ज्यादा सरलता से सीखता है लेकिन उसे यदि यही अधिगम की प्रक्रिया जेल लगने लगे या उबाउ लगने लगे तो फिर वहां अधिगम किसी भी परिस्थिति में नही हो सकता है । सरकार का ये तर्क कि कमजोर बालको को अतिरिक्त समय पढाया जाकर उन्हे सामान्य बालको के स्तर तक लाने के लिए ऐसा किया जा रहा है बाल मनो विज्ञान के मानदण्डो के विपरीत है । एक कमजोर छात्र को लगातार साढे 7 घन्टे विद्यालय मे रोक कर उसे सामान्य बालक के स्तर तक कैसे लाया जा सकता है । वैसे भी कमजोर बालक का मानसिक स्तर सामान्य बालक के मानसिक स्तर से कम होता है उसकी एकाग्रता इतने अधिक समय तक किसी भी स्तर मे नहीं बनी रह सकती । जब किसी बालक की एकाग्रता सामान्य बालक से भी कम हो और उसे सामान्य बालक से भी अधिक समय तक एकाग्र करने का प्रयास किया जावे तो उसका क्या परिणाम होता है शायद हमारे शिक्षा विद् या शिक्षा का अधिकार कानून मे ऐसा प्रावधान करने वाले नही जानते । ऐसी स्थिति मे बाल मन पर इसका विपरीत असर पडता है या फिर बालक स्कूल से कतराने लगता है उसे स्कूल जेल जैसी व उबाउ लगने लगती है और वह स्कूल से भागने या आने से कतराने लगता है ।
बालक को स्वाभाविक तरीके से कराया गया अधिगम ही सरल सरस व प्रभावी हो सकता है । यदि उसे अन्य विधार्थियो से अलग रखकर अधिगम कराने का प्रयास किया जाता है तो उसके अधिगम की गति बढने की बजाय घट सकती है या फिर वह इतना कुठित हो सकता है कि वह शिक्षण से मुंह ही मोड ले शिक्षा मे ऐसी व्यवस्था करने वाले स्वयं एक प्रयोग अपने बालक पर करके देखे और उसके बाद उसके परिणामों को देखे तो उनको यह बात आसानी से समझ मे आ सकेगी कि यदि एक सामान्य बालक या कुशाग्र बालक को भी उसकी इच्छा के विपरीत सामान्य समय से अतिरिक्त रोक कर अधिगम कराया जाए तो उसके सीखने की गति पर विपरीत प्रभाव पडेगा वह सामान्य परिस्थितियो की अपेक्षा धीरे धीरे कम एकाग्र होगा और एक परिस्थिति ऐसी आएगी कि उसका अधिगम सामान्य से भी कम अथवा उसके स्वयं के पूर्व के स्तर से भी कम होने लगेगा । यह मनोविज्ञान कहता है । यानि सामान्य परिस्थितियो का अधिगम अधिक प्रभावी एवं फलदायक होता है जबकि असामान्य परिस्थितियां बालक के मन पर बोझ का काम करती है जो बालक के मन मस्तिष्क पर विपरीत प्रभाव डालती है । वर्तमान बढाया जा रहा समय एक बालक के मन मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डालेगा । उसे अतिरिक्त समय मे आना दूसरे बालको से अलग करेगा । हालांकि यहा उद्देश्य उसे सामान्य बालको के स्तर तक लाना है लेकिन उसे जल्दी शाला बुलाना या शाला समय के बाद रोकना उसकी मानसिक स्थिति को प्रभावित करेगा । उस बालक को लगेगा कि उसे अन्य बालको से अलग रखा जा रहा है जिसके कारण उसे विद्यालय जेल जैसा या उबाउ स्थान होने का आभास देगा जो उसे अपने स्वाभाविक मानसिक स्तर से भी नीचे ले सकता है । इसका प्रभाव ये होगा कि या तो ऐसे बालक विद्यालय आना छोड देगे अथवा उनकी शारीरिक स्थिति कमजोर होने लगेगी ।
इसके अलावा जब किसी बालक को विद्यालय मे साढे 7 घन्टे रोका जाएगा तो उसे अतिरिक्त उर्जा की जरूरत होगी लेकिन इसके लिए कोई व्यवस्था नही की गई है सामान्यतः बालक को 3 से 4 घन्टे के बाद भूख का अहसास होने लगता है । सुबह साढे 8 बजे शाला आने वाला बालक अपने घर से 15 मिनट पूर्व तो रवाना होगा ही और यदि उसे शाम 4 बजे तक रोका जाता है तो इस बीच उसे उर्जा प्राप्त करने के लिए दो बार खाने की तलब होगी । ऐसे मे विद्यालयो मे क्या कोई दूसरी व्यवस्था की गई है । एक समय तो मिड डे मील की व्यवस्था है लेकिन दूसरे अतिरिक्त समय मे बालको को क्या पौष्टिक आहार दिया जाएगा ये अभी तय नहीं है ।
राजस्थान की भौगोलिक परिस्थितियां भी अन्य राज्यो से अलग है यहां सर्दियो मे अधिक सर्दी और गर्मियो मे सुबह से ही सूर्य अपनी प्रचण्डता दिखाने लगता है । सर्दियों में सुबह 7 बजे तक सूर्य के दर्शन तक नहीं होते । कोहरा व ठंड इतनी अधिक होती है कि बालक के लिए वर्तमान सर्दियो के साढे दस बजे के समय मे भी आना दूभर होता है तो क्या वह नये समय साढे आठ बजे विद्यालय पहुच सकेगा । जो कि प्रातः साढे 8 बजे का होने वाला है । इसी प्रकार नये समय के अनुसार गर्मियो मे यह समय साढे 7 बजे से दोपहर 3 बजे तक होगा । राजस्थान की भौगोलिक परिस्थितियां ऐसी है कि गर्मियों मे सूर्य अपनी प्रचण्डता सुबह 10 बजे बाद ही दिखाने लगता है पिछले कई सालो से सरकार को इसी कारण विद्यालयो का समय 11 बजे तक करना पडा है फिर भी पिछले अनुभवो से कोई सीख नहीं लेते हुए नए शिक्षा के अधिकार की आड मे गर्मियो मे यह समय सुबह साढे सात से दोपहर 3 बजे तक रखा गया है । लगता है उच्च पदो पर ऐसा निर्धारण करने वाले हमारे अधिकारी व नीति निर्धारक घटित हो चुकी परिस्थितियो से भी कोई अनुभव नहीं लेते । तभी अभी तो शिक्षक समुदाय विरोध में उतरा है और जब व्यवहार मे अपने बालको पर मानसिक दबाव जनता महसूस करेगी तो वह भी भविष्य मे इसका विरोध कर सकती है ।
सरकार विद्यालयो का समय बढाकर शिक्षको तो साढे 7 घन्टे तक शालाओ मे रोक सकती है लेकिन बालको को रोक सकेगी इसमे सन्देह दिखाई देता है । वर्तमान स्थिति ये है कि साढे 5 घन्टे के विद्यालय समय मे भी अभिभावक अपने बच्चो को खेती के समय मे विद्यालय नहीं भेजते तो फिर साढे 7 घन्टे का समय होने पर तो शायद ही वे अपने बच्चो को स्कूलो मे भेजे । क्योकि पूरा दिन तो बच्चो का स्कूलो मे ही बितने वाला है ऐसे मे बच्चो की स्कूलो मे उपस्थिति कम ही रहेगी । फसलो के पकने के समय अभिवावक बच्चो को खेत की निगरानी के लिए रोक लेते है और स्वयं बाजार आदि मे अपने अन्य कार्यो को निपटाना चाहते है क्योकि फसलो की कटाई के समय उनके अन्य काम होना मुश्किल होते है अतः वे फसल के पकने व कटाई होने के बीच अपने अन्य घरेलू काम निपटाना चाहते है ऐसे मे फसल के पकने तक उनकी रखवाली का काम वे अपने बच्चो से कराना चाहते है और यही कारण है कि यदि आकलन किया जावे तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि फसलो के पकने की अवधि मे स्कूलो मे छात्रो की उपस्थिति अपेक्षाकृत कम रहती है ।
गम्भीर चिन्तन करने योग्य है कि क्या ऐसे मे बढा हुआ समय बच्चो व अभिभावको के लिए उचित रहेगा । गर्मियो मे राजस्थान मे यह स्थिति रहती है कि स्कूलों में पीने के पानी का अभाव रहता है इसके अलावा बच्चो को प्रचण्ड गर्मी के कारण आने जाने मे परेशानी होती है । प्रतिवर्ष ये समाचार मिलते है कि अमुक जगह बच्चे स्कूल से निकले लेकिन गर्मी के कारण प्यास की वजह से अपनी जान बचा नहीं सके । इन सब परिस्थितियो को ध्यान मे रखकर सरकार को स्कूलो के बढाए जा रहे समय पर चिन्तन कर पुनर्विचार करना चाहिए तथा मनो वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यदि उसे लगे कि ये सही है व बाल मनो विज्ञान के अनुकूल है तो ही इसे लागू करना चाहिए । शिक्षा विभाग को प्रयोग शाला बनाना उचित नहीं है कि ये देखा जाएं कि एक बार देखते है यदि उचित नहीं हुआ तो फेरबदल कर देगे यह सोच शिक्षा का बंटाधार कर देगी । शि़क्षा जैसे क्षेत्र मे प्रयोग उचित नहीं है ।
हर विकसित देश मे किसी भी स्थिति को लागू करने से पूर्व उस पर प्रयोग किये जाते है उसके परिणामों को देखा जाता है और यदि वे अनुकूल हो तो ही उसे पूरी व्यवस्था मे लागू किया जाता है लेकिन हमारे देश मे पूरी व्यवस्था पर ही प्रयोग किया जाता है जिसका परिणाम यह होता है कि उसे या तो बदलना पडता है या फिर वापस लेना पडता है । जो कि शिक्षा जैसे क्षेत्र मे उचित नहीं है । आवश्यकता इस बात है कि शिक्षा जैसे क्षेत्र मे किसी भी व्यवस्था को लागू करने से पूर्व उस पर गंभीर चिन्तन ही नहीं बल्कि उस पर प्रायोगिक तौर पर प्रयोगो के सफल व सुफल परिणाम आने पर ही लागू किया जाना चाहिए तब ही शिक्षा मे हमें सही परिणाम मिल सकेगे ।