मंगलवार, 28 अगस्त 2012

कोयला ब्लाक के आवंटन पर केग की रिर्पोट पर बवाल

कोयला ब्लाक के आवंटन पर केग की रिर्पोट पर बवाल

देश में अभी 2 जी घोटाले के बाद कोयला ब्लाकस् के आवंटन पर भ्रष्टाचार को लेकर बवाल मचा हुआ है। बीजेपी की मांग है कि केग की रिर्पोट में भ्रष्टृाचार का ख्लासा होने के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को इस्तीफा दे देना चाहिए क्योंकि जिस समय की यह रिर्पोट है उस समय कोयला विभाग के मंत्री का कार्यभार स्वयं प्रधानमंत्री देख रहे थे इसलिए वे सीधे सीधे जिम्मेदार है और उन्हे पद पर बने रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। पिछले 7 दिनों से संसद का मानसून सत्र बिना एक दिन भी चले निकल गया है हर रोज संसद का सत्र शुरू होता है और हंगामे के कारण बिना किसी विधाई कार्य के समाप्त हो जाता है जिससे देश को प्रतिदिन करोडों स्पये का नुकसान हो रहा है।

प्रश्न यह है कि इन कोयला ब्लाकस् के आवंटन में हुए घोटाले के लिए जिम्मेदार कौन है  क्या वास्तव में घोटाला हुआ है और यदि हुआ है तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है  न्यूज चैनलों पर राजनैतिक दलों की चर्चाए हो रही है सब अपने को पाक साफ बता रहे है और जनता को गुमराह कर रहे है। इसको समझने के लिए हमें वास्तव मे इन ब्लाकस् के आवंटन की प्रक्रिया को समझना होगा तभी आम जनता यह समझ सकेगी कि न्यूज चैनलों पर चल रही चर्चाओं में किस पार्टी के नेता जनता को मूर्ख बना रहे है दुर्भाग्य भी ऐसा है कि हमारे देश के न्यूज चैनल भी राजनैतिक नेताओं की बहस तो दिखा रहे है लेकिन जनता को कोल ब्लाकस् के आंवटन की प्रक्रिया नहीं बता रहे यदि वे इन बहस से पूर्व जनता को इसके आंवटन की प्रक्रिया बताकर फिर बहस को दिखाए तो आम जनता को इन नेताओं के सफेद झूठ को समझने का अवसर मिलेगा तथा जनता को मालूम हो सकेगा कि किस पार्टी के नेता जनता को मूर्ख बना रहे हैं।

 कोयला ब्लाकस आवंटन की प्रक्रिया -

  वास्तव में छोटे कोयला ब्लाकस के आवंटन का अधिकार तो राज्य सरकारों के पास है लेकिन यदि बडे ब्लाकस् आवंटन करने हो तो संबंधित राज्य सरकार को केन्द्र सरकार के कोयला मंत्रालय व पर्यावरण मंत्रालय की अनुमति की जरूरत होती है उसके लिए संबधित राज्य सरकार को इसका औचित्य बताते हुए अपनी अभिशंषा केन्द्र सरकार को भेजनी पडती है जहा एक कमेटी राज्य सरकारों द्वारा प्राप्त इन अभिशषाआं पर विचार कर अपनी स्वीकृति जारी करती है इस कमेटी में संबंधित राज्य सरकार के मुख्य सचिव राज्य सरकार की ओर से अपने औचित्य या पक्ष को रखने के लिए उपस्थित रहते है। कमेटी की मुहर के बाद ही संबंधित फर्म को कोयला ब्लाकस् के आंवटन होते है। आंवटन की प्रक्रिया के तहत राज्य सरकार को ब्लाकस् आवंटन के पूर्व जिस फर्म को ब्लाकस् आवंटन कराने होते है उनके साथ एमओयू करना होता है जिसके तहत वे समस्त शर्ते व अनुंबंध होते है जिनका पालन संबंधित फर्म को करना होता है संबंधित राज्य सरकारों का यह दायित्व होता है कि वह मौजूदा नियमों के परिपेक्ष्य में एमओयू करें। केन्द्र सरकार की कमेटी एमओयू की प्रति ब्लाकस् आवंटन का क्षेत्र जो कि राज्य सरकार ही अभिशंषित करती है फर्म को ब्लाकस् आंवटन के औचित्य व फर्म की आर्थिक स्थिति की जानकारी आदि केन्द्रीय कोल आवंटन समिति के समक्ष प्रस्तुत करती है तथा उस फर्म की तरफ से एमओयू होने के बाद उसकी तरफ से आवंटन कराती है। केन्द्रीय कमेटी किसी भी फर्म को कोल ब्लाकस् का आंवटन उस ही स्थिति में करती है जबकि संबंधित राज्य सरकार के साथ एमओयू हो गया हो तथा वह मौजूदा नियमों का पालन करती हो। केन्द्रीय कमेटी यह मानकर चलती है कि राज्य सरकार द्वारा एमओयू होने का तात्पर्य है कि संबंधित राज्य सरकार ने संबंधित फर्म से उसी स्थिति में एमओयू  किया है जबकि वह सभी निर्धारित योग्यताए पूरी करती हो यदि किसी राज्य सरकार ने किसी फर्म से एमओयू करते समय किसी भी नियम जो कि निर्धारित है उसकी अनदेखी कर किया है तो इसकी जिम्मेदारी संबंधित राज्य सरकार की होती है न कि केन्द्रीय आवंटन समिति की। क्योंकि समिति यह मानकर चलती है कि कोई भh राज्य सरकार निर्धारित नियमों के विपरीत एमओयू नहीं करेगी। इसलिए एमओयू होने के बाद यह जांच सामान्यतः नही की जाती कि संबंधित फर्म इस आवंटन के योग्य है या नहीं ये देखना राज्य सरकार का काम है। हा यह अलग बात है कि यदि समिति के समक्ष ऐसी कोई शिकायत आती है जिसमे राज्य सरकार द्वारा निर्धारित नियमों के विपरीत जाकर एमओयू किया गया हो तो केन्द्रीय आंवटन समिति उसकी जांच करा सकती है। अर्थात् केन्द्रीय आंवटन
समिति राज्य सरकारों द्वारा अभिशंषित फर्म को उसकी अभिशंषा अनुसार ब्लाकस् आवंटन कर देती है यह एक सामान्य प्रक्रिया के तहत होता है।

अब हम प्रक्रिया समझने के बाद आते है कि कैग ने रिर्पोट में क्या लिखा है

नियंत्रक व महालेखा परीक्षक (केग) ने अपनी रिर्पोट में लिखा है कि छतीसगढ झारखण्ड मध्य प्रदेश राजस्थान बिहार महाराष्ट् सहित राज्यों में जो कोल ब्लाकस् आवंटित किये गए है उन्हे यदि नीलामी की प्रक्रिया अपनाकर आंवटित किया जाता तो अधिक राजस्व की प्राप्ति होती और उसने एक आधार दर मानकर यह अनुमान लगाया कि इस अवधि मे आंवटित 57 कोल ब्लाकस् से सरकार को इतना राजस्व मिल सकता था जो कि नहीं मिला जिसके कारण सरकार को 1-86 लाख करोड रूपये के राजस्व का नुकसान हुआ।

आइए अब समझते है कि क्या नियमों में कोल ब्लाकस् को नीलामी की प्रक्रिया द्वारा आवंटन का नियम था  1999&-2004 में राजग की सरकार केन्द्र में थी उस समय की प्रक्रिया नीलामी द्वारा कोल ब्लाकस् आवंटन की प्रक्रिया नहीं थीं जब 2004&2009 में केन्द्र में यूपीए की सरकार आई तो उसने कोल ब्लाक्स को नीलामी की प्रक्रिया से आवंटन करने का प्रस्ताव रखा जिसका संबंधित राज्य सरकारों ने विरोध किया उस समय छतीसगढ झारखण्ड मध्य प्रदेश राजस्थान बिहार महाराष्ट् आदि राज्यों में विरोधी दलों की सरकारें थी और चूंकि खनिज सम्पदा वाले राज्य नीलामी प्रक्रिया नहीं चाहते थे इसलिए ये प्रस्ताव ठंडे बस्ते में चला गया और आंवटन पूर्व की  प्रक्रिया से जारी रहे। 2009&2014 के यूपीए के दूसरे कार्यकाल में इन राज्यों में से कई में कांग्रेस की सरकारे आ गई इसलिए यूपीए सरकार ने इस टर्म में नीलामी प्रक्रिया के प्रस्ताव को पुनः नहीं लागू किया और पूर्व अनुरूप ही कोयला ब्लाकस् आवंटन होते रहे। केन्द्रीय आडिटर जनरल की रिर्पोट में यह बताया गया है कि यदि इन ब्लाकस् को नीलामी प्रक्रिया से आंवटित किया जाता तो ज्यादा राजस्व की प्राप्ति हो सकती थी। बीजेपी इसी मुद्दे को उछाल रही है कि केग ने अपनी रिर्पोट में इतना नुकसान बताया है चूंकि अभी कई राज्यों में उसकी सरकार नहीं है इसलिए वह बवाल मचा रही है। वह जानती है कि इसका राजनैतिक फायदा लिया जा सकता है। लेकिन यदि वास्तव में देखा जाए जो यूपीए-1 की सरकार के समय नीलामी की प्रक्रिया का बीजेपी शासित राज्यों ने ही विरोध किया था जिसके कारण यूपीए की सरकार ने नीलामी की प्रक्रिया को लागू नहीं किया था। देखा जाए तो इस नुकसान के लिए तो तत्कालीन बीजेपी/गैर काग्रेस शासित राज्यों की सरकारें जिम्मेदार है। आने वाले समय में तत्कालीन सरकारों के मुख्यमंत्रीयों के वे पत्र भी सामने आ सकते है जिसमें उन्होने इस प्रक्रिया का खुलकर विरोध किया है।

केग की रिर्पोट में 57 कोयला ब्लाकस् के बारे में बताते हुए कहा गया है कि यदि इन ब्लाकस् को नीलामी द्वारा बेचा जाता तो सरकार को 1-86 लाख करोड रूपये और राजस्व के रूप में मिल सकते थे । राजनीतिक दलों की राजनीति देखिए कि बीजेपी ने इन 57 ब्लाक्स से भी आगे बढकर अपनी रिर्पोट बना ली है उसने यूपीए सरकार के सारे कार्यकाल (दोना टर्म) 2004&2010 तक आंवटित कुल 142 कोयला ब्लाक्स की रिर्पोट तैयार कर इसे 10 लाख करोड तक पहुचा दिया है । 2004 से पूर्व चंकि केन्द्र में उसकी सरकार थी इसलिए उस अवधि को वह इसमें शामिल नहीं कर रही। इस राजनीति पर काग्रेसी कह रहे है कि 2004 से पूर्व के आंवटनों पर बीजेपी चुप क्यों है 1999&2004 के आंवटनों को बीजेपी क्यों नहीं शामिल कर रही 

इससे स्पष्ट है कि कांग्रेस और बीजेपी दोनो ही पार्टीयां अपने अपने राजनैतिक फायदे के अनुसार ही बाते कर रहे है जनता को सच बताने का इरादा किसी का भी नहीं है । यदि दोनो ही पार्टीयां जनता के प्रति इ्र्रमानदार होती तो केवल केग रिर्पोट की अवधि पर ही अपना अपना पक्ष रखती । ये भी सच है कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने सभी राजनैतिक पार्टीयों द्वारा अपने चहेते को लाभ देने के मकसद से जनता के पैसे को चूना लगाए जाने की ओर इशारा किया है । केग ने अपनी रिर्पोट में यह बताया है कि यदि नीलामी प्रक्रिया अपनाई जाती तो देश को ज्यादा राजस्व की प्राप्ति होती जो कि जन कल्याण के कार्यो पर खर्च की जा सकती थी।

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