रविवार, 9 अक्तूबर 2011

अन्ना टीम के राजनीति की ओर कदम


अन्ना की टीम सामाजिक सरोकारो मे मिली सफलता के बाद अपने कदम राजनीति की ओर बढाने की कोशिश कर रही है । समाज मे बढ रहे भ्रष्ट्ाचार को मिटाने के प्रयासो के तहत अन्ना टीम को मिली भारी सफलता के बाद अन्ना टीम को यह लगने लगा है कि जनता का भारी समर्थन उसके साथ है उनकी टीम को यह दंभ हो गया है कि जिस तरह समाज में व्याप्त भ्रष्ट्ाचार को दूर करने मे उसे भारत की जनता को जो जन समर्थन मिला वह उसे राजनीतिक सफलता भी दिला सकता है । हांलाकि अन्ना टीम ने अभी तक पूरी तरह राजनीति मे आने की घोषणा तो नहीं की है लेकिन हिसार मे हो रहे लोकसभा चुनावों मे उसने कांग्रेस को हराने का आव्हान् कर राजनीति मे आने के संकेत दे दिए है ।

अन्ना टीम इस चुनाव मे सीधे तौर पर तो मैदान मे नहीं है लेकिन उसने सत्तारूढ कांग्रेस के पार्टी के उम्मीदवार को जनता से अपील कर एक प्रयोग करने का प्रयास किया है कि उनकी अपील को जनता कितनी तव्वजो देती है यदि इस अपील का व्यापक असर होता है और कांग्रेस का उम्मीदवार हार जाता है तो आगे रणनीति तय की जा सकती है । अन्ना टीम मे अरविन्द केजरीवाल  जैसे आई आई टी से निकले प्रतिभाशाली आई ए एस है तो किरण बेदी जैसी आईपीएस  रह चुकी अधिकारी एवं सामाजिक कार्यकर्ता है दूसरी तरफ पूर्व न्यायाधीश व पूर्व कानून मंत्री  रह चुके पिता पुत्र की जोडी है ।

  कहना न होगा कि इस टीम मे महत्वाकांक्षी लोग है जो अपने बूते कुछ करना चाहते है । भ्रष्टाचार के विरूद्ध लडी गई लडाई मे मिले भारी जन समर्थन ने इस टीम की महत्वकांक्षाओं को बढा दिया है । लगता है इस टीम को इस आन्दोलन के बाद यह समझ मे आ गया है कि जन समर्थन अलग बात है और संसद मे अपने अनुसार कानून बनवाना अलग बात ं। इसीलिए अन्ना टीम ने यह तय कर लिया लगता है कि जन सर्मथन के साथ साथ अपनी बात मनवाने के लिए संसद मे अपने प्रतिनिधी भी होना जरूरी है और उसी रणनीति के तहत इस टीम ने पहले हरियाणा मे 13 अक्टूबर 2011 को हो रहे लोकसभा उप चुनावो में अपनी अपील का असर देखने के लिए सत्तारूढ काग्रेस पार्टी के उम्मीदवार को हराने की अपील कर अपना पहला राजनीतिक प्रयोग किया है । बडे सोच समझ के साथ जनता को यह नहीं बताया गया है कि वहा की जनता किस पार्टी के उम्मीदवार को हराए । ये जनता पर छोडा गया है कि वह किसी भी को भी जिताए लेकिन कांग्रेस के प्रत्याशी को हराए । और जो इसका कारण बताया जा रहा है  वह यह है कि सत्तारूढ कांग्रेस पार्टी जन लोकपाल बिल को लाने के प्रति गंभीर नहीं है ।

इसके पीछे कई हेतु छिपे हुए लगते है जिनमे एक तो यह कि अभी अन्ना टीम किसी भी राजनीतिक पार्टी के साथ जुडी नहीं है यदि किसी पार्टी उम्मीदवार को जिताने की अपील की जाताी हे तो इस टीम पर उस पार्टी से जुडे होने का आरोप लग सकता है इसके अलावा अगर उसकी अपील का व्यापक असर होता है तो देश की सभी बडी राजनीतिक पार्टीयां अन्ना टीम से जुडने को तैयार हो जाएगी जिससे अन्ना टीम को भविष्य मे यह निर्णय लेने का अवसर मिल जाएगा कि वह किस राजनीतिक पार्टी के साथ अपना गठजोड करें इसके अलावा दूसरा विकल्प यह रहेगा कि यदि हिसार उपचुनाव मे कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी की बडी हार हो जाती है तो वह अगले वर्ष 5 राज्यो मे होने वाले विधान सभा चुनावो मे अपना राजनीतिक दल बनाकर अपने उम्मीदवार खडे कर सकती है । इन दोनो विकल्पो के कारण ही अन्ना टीम ने किसी भी अन्य पार्टी के प्रत्याशी को जिताने की अपील जनता से नही की है सिर्फ जनता को काग्रेस के उम्मीदवार को हराने की अपील कर पत्ते अपने हाथ मे रखने का प्रयास किया गया है ताकि इस चुनाव नतीजे के आधार पर ही भावी योजना को अंजाम दिया जा सके ।

अन्ना टीम ने यूपीए सरकार पर दबाव बनाने के लिए शीतकालीन सत्र मे जन लोकपाल बिल पारित कराने की शर्त लगाई है क्योकि यह टीम जानती है कि सरकार के लिए शीतकालीन सत्र मे यह बिल पारित कराना टेढी खीर है अभी यह बिल संसद की स्थाई समिति के पास विचाराधीन है जिसमे सभी पार्टीयों के संासद है और यूपीए के अलावा दूसरे गठजोड यह नहीं चाहेगे कि यह बिल शीतकालीन सत्र मे पारित हो जाए इसलिए वे इसे स्थाई समिति मे ही रोकने का भरसक प्रयास करेगे ताकि सरकार की किरकिरी हो और अन्ना टीम  सरकार के लिए परेशानी पैदा करे । वे गठजोड नही चाहते कि सरकार और अन्ना टीम जनता मे वाहवाही ले जाए इसलिए वे इसे स्थाई समिति से आगे जाने ही नही देना चाहेगे । यदि सरकार ने येन केन प्रकारेण इसे  भरसक प्रयास कर शीतकालीन सत्र मे पेश कर करवा ही दिया तो संसद इसे पारित नहीं करेगी क्योकि किसी भी बिल को पारित करने के लिए संसद के बहुमत का होना जरूरी है और यूपीए सरकार कितने ही दलो की वैशाखियो पर टिकी है जो उसे ऐसा करने नहीं देगे । इस प्रकार विपक्ष अपनी योजना मे सफल हो सकता है ।

अन्ना टीम के नीति निर्धारक ये जानते है इसलिए उन्होने घोषणा कर दी है कि यदि सरकार ने शीतकालीन सत्र मे जन लोकपाल बिल को पारित नहीं किया तो आगामी साल 5 राज्यो मे होने वाले विधानसभा चुनावो मे वे कांगेस को हराने के लिए जी जान  लगा देगे । इसमे भी इस टीम ने यह घोणणा नही की है कि वह अपने उम्मीदवार उतारेगी या किसी दूसरे दल का समर्थन करेगी । ये भी इस टीम मे अपनी मुठ्ठी मे रखा है जो हिसार के उपचुनावो के  परिणामों के बाद खुलेगी । भाजपा मे भी अच्छे नीति निर्धारक है उन्होने भी भावी रणनीति के तहत अन्ना टीम को अपनी ओर से जन लोकपाल बिल का समर्थन  करने का पत्र सौप दिया है ताकि राजनीति करवट बदले तो वे यह कह सके कि हमारी पार्टी ने तो अन्ना टीम को कभी का समर्थन दे दिया । ताकि भविष्य मे यदि  जरूरत पड जाए तो अन्ना टीम का समर्थन हासिल किया जा सके । ये निश्चित सा लगता है कि अन्ना टीम राजनीति मे कदम रखेगी क्योकि उसके जो एजेडा है  उसमे चुने हुए सांसदो को वापस बुलाने का अधिकार जनता को देना आदि जैसे कई लोक लुभावन बाते है जिसे कोई राजनीतिक दल स्वीकार नहीं कर सकता । ऐसे मे इस टीम के पास अपने उम्मीदवार मैदान मे उतारने के अलावा कोई विकल्प भी नहीं है । इसलिए भाजपा जान गई है कि अन्ना टीम की भविष्य मे उसे कहीं न कहीं जरूरत पडने वाली है चाहे सरकार बनाने मे ही क्यो न पड जाए ।

सत्तारूढ कांग्रेस सरकार अभी अन्ना टीम को लेकर भावी रणनीतिक रूप से तैयार नहीं लगती । अभी तो वह अन्ना टीम से पार पाने के लिए जूझ रही है । जन लोकपाल बिल को शीतकालीन सत्र मे पारित करवाकर सत्तारूढ सरकार एक बार अन्ना टीम को मना सकती है लेकिन अन्ना टीम ने तो अपनी आगामी योजना पहले से ही घोषित कर दी है कि उसका अगला कदम चुने जन प्रतिनिधियो को वापस बुलाने का अधिकार मांगने का होगा । ऐसे मे किसी भी सत्तारूढ दल के लिए परेशानी ही होनी है । चाहे वह कांग्रेस गठबंधन की सरकार हो या चाहे अन्य गठबंधन की सरकार । अन्ना टीम सत्तारूढ सरकार के लिए परेशानी का सबब बनेगी ही ।

अन्ना टीम जानती है कि कोई भी सरकार यह आत्मघाती कदम नहीं उठा सकेगी इसलिए जनता को अपनी ओर मोडने तथा सत्ता के गलियारो का स्वाद चखने के लिए यह जरूरी है कि वह स्वयं अपने उम्मीदवार मैदान मे उतारे और इस एजेडा के सहारे उसकी वैतरणी पार होती भी लगती है । इसी योजना के तहत अन्ना ने घोषणा की है कि वह पूरे देश मे घूमकर अपनी टीम तैयार करेगे ओर ऐसे युवाओ को चुनाव मैदान मे उतारेगे जिन्हे वे परख लेगे । अर्थात् भावी योजना का खाका तैयार हो चुका है अन्ना टीम का । अब यदि 2014 के लोकसभा चुनावों मे अन्ना टीम को जनता ने पूर्ण समर्थन दे दिया तो सत्ता का स्वाद अन्ना टीम भी चख लेगी और ये बहुत ही मुमकिन है कि सत्ता मे आने के बाद अन्ना टीम भी अन्य दलो की तरह जनता से किये वादे भूल जाए क्योंकि सत्ता का नशा होता ही ऐसा है कि अच्छे अच्छो को अंधा बना देता है वे लोग जो जनता से वादा कर सत्तासीन होगे वो ही भूल जाऐगे कि उन्होने चुने हुए जन प्रतिनिधियो को वापस बुलाने का अधिकार जनता को दिलाने का वादा किया था । याद होगा आपको 1977 का दौर जब जनता ने कांग्रेस का सूपडा साफ कर दिया था लेकिन वो ही सरकार ढाई साल भी नहीं चल सकी थी। और यदि अन्ना टीम को 2014 के लोकसभा  चुनावों मे सरकार बनाने का अवसर नहीं मिलता है या स्पष्ट बहुमत नही मिलता है तो भी अन्ना टीम के महत्वकांक्षी लोगो को तो सत्ता सुख मिल ही जाएगा  क्या वे संसद मे उस बिल को पास करवा सकेगे ।

यदि वास्तव मे अन्ना टीम को जनता के साथ रहना है तो उसे सत्ता मे आने की योजना के स्वप्न नहीं देखने चाहिए  उन्हे केवल सामाजिक सरोकारो के लिए लडने वाली टीम के रूप मे ही रहकर जनता के साथ मिलकर उसे सरकार से जनता को उसके हक दिलाने का प्रयास करते रहना चाहिए चाहे सरकार किसी भी दल की क्यों न बने । तभी जनता उसके साथ बनी रहेगी और प्रतिष्ठा भी । अन्यथा अन्ना टीम ने जो प्रतिष्ठा जनता मे बनाई है उसे भी खोना पड सकता है  क्योकिं सत्ता के नशे ने लोकनायक जय प्रकाश नारायण के आन्दोलन  उनके संघर्ष व उनके सत्ता के मोह त्याग को भी ढाई सालो मे ही भूला दिया था । जय प्रकाश नारायण के आन्दोलन ने ही जनता पार्टी को सत्ता के गलियारो तक पहुंचाया था तथा सत्ता के मोह से दूर जय प्रकाश नारायण ने कोई भी पद नहीं लेकर अपने लोगो को एक अच्छे शासन देने की आश मे सत्ता की लगाम सौपी थी जिन्हे उनके अनुयायी ढाई वर्ष भी संभाल नहीं सके थे । 

1 टिप्पणी:

  1. ये आलेख मैने 09 अक्टूबर 2011 को लिखा था और इसके ठीक एक साल बाद 02 अक्टूबर 2012 को अरविन्द केजरीवाल ने राजनीतिक पार्टी आम आदमी पार्टी का गठन कर लिया । आम आदमी पार्टी के गठन से एक साल पहले लिखा गया मेरा यह आलेख उस समय कई लोगो को मजाक लगा होगा लेकिन मेरा अनुमान सही निकला ।

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