सोमवार, 4 अप्रैल 2011

जलजलों के मुख पर बसा जापान

जलजलों के मुख पर बसा जापान देश इस बार पिछले 140 वर्षो के भंयकर दौर से गुजर रहा है। वहां भूकम्प के बाद आई सुनामी ने कोढ में खाज का काम किया है। भूकम्प की तीव्रता जहा रिचर स्केल पर 8‘8 से 9 तक आंकी जा रही है वहंी सुनामी ने तो वहां ऐसा कहर ढाया है कि क्या हवाई जहाज क्या पानी के जहाज ऐसे बह गए है जैसे कोई खिलौने बह रहे है कारों और मकानों की हालत तो तिनके की तरह होकर रह गई । जापान के लोग जितने मेहनती व जिम्मेदार माने जाते है प्रकृति उनकी परीक्षा उतनी ही ज्यादा लेती है । यहीं तक नहीं रूका है जापान का कहर जापान के 10 रिएक्टरों मे से 3 में रिसाव की जो संभावनाए व्यक्त की जा रही है वह कोढ में खाज ही नहीं वरन् कोढ में घाव की स्थिति कही जा सकती है। जापान में आए इस जलजले की भेंठ करीब 10000 लोगों के चढने की संभावना व्यक्त की जा रही है जबकि जिस तरह की तबाही सामने आ रही है उससे नहीं लगता कि ये 10000 तक सीमित रह सकती है । वहा आए भूकम्प के तेज गति की दो रेल गाडिंयों का कोई अता पता नहीं है।
   जो देश विश्व में सबसे ज्यादा भूकम्प सहता रहा हों वहा की सरकार इस प्राकृतिक आपदा के प्रबंधन में चूक कैसे गई समझ से परे है। बताया जाता है कि परमाणु रिएक्टरों की बुनियाद इस आधार पर रखी गई थी कि यदि भूकम्प की तीव्रता 8.8 तक हो तो इन रिएक्टरों को कोई नुकसान नही हो सकता था लेकिन भूकम्प ने तो 9 की तीव्रता की तबाही लाकर जापानी सरकार के सभी प्राकृतिक आपदा प्रबधंन को ही हिला कर रख दिया हैं । कितना कुछ सोचा जाएं लेकिन प्रकृति मानवीय प्रबंधन को तहस नहस कर सभ्यताआं का विनाश कर देती है ये साबित हो गया हैं । विज्ञान चाहें कितनी ही प्रगति कर लें लेकिन प्रकृति की नियति के आगे वह बेबस ही रहेगा ये जापान के जलजले ने एक बार फिर साबित कर दिया है।
   जापान के परमाणु रिएक्टरों से जो खतरा जापान को होने की संभावना है उससे पूरे विश्व में इस पर विचार करने का समय आ गया है कि जो हमारे वैज्ञानिक सोच नहीं सकते वो प्रकृति कर सकती है और बेेवस हो जाते हैं । जापान विश्व का एक मात्र देश है जिसने द्वितीय विश्व युद्ध के विनाश के बाद अपने को न केवल संभाला बल्कि इस स्थिति में ला खडा किया कि उसकी बराबरी इतने कम समय मे अमरिका तक नहीं कर सकता। जापान की टेक्नोलाजी का मुकाबला कोई नहीं कर सकता लेकिन वो ही जापान आज अपनी इतनी टैक्नोलाSजी के बाद भी प्रकृति के सामने बेवस दिखाई दे रहा हैं । कल्पना किजिए यदि ऐसा ही जलजला व सुनामी अगर विश्व के किसी अन्य देश में आई होती तो जान माल की हानि र्कइं गुना ज्यादा होती । और वह देश विश्व के नक्शे से गायब हो जाता क्योंकि विश्व के किसी भी देश में इस तरह की आपदाओं से निपटने के लिए किसी तरह का पुख्ता एवं प्रभावी आपदा प्रबंधन नहीं है। ।
    हम अगर भारत की ही बात ले तो यहां तो केवल आग लगने के बाद कुंआ खोदने की पंरपरा रही है। लातूर के भूकम्प के बाद हमने क्या प्रबंध किये है भूकम्प से निपटने के लिए ये किसी से छिपा नहीं हैंा यदि यही तीव्रता का भूकम्प भारत में आया होता तो यहा लाखों लोगो की जान जा चुकी होती । लातूर के बाद भी हमने न केवल गुजरात में बल्कि भारत के किसी भी प्रांत में ऐसे भूकम्प रोधी मकानों की कोई कल्पना तक नहीं की है जिससे कि ऐसी स्थिति आने पर जान माल के नुकसान को कम किया जा सकें । लातूर में भूकम्प रोधी मकान बनाए गए हो ये कुछ हद तक संभव हो सकता है लेकिन भारत के किसी अन्य क्षेत्र में ऐसा हुआ तो हमने क्या तैयारी की है ये स्वयं हमारी सरकार नहीं जानती । प्राकृतिक आपदा पहले ही कोई संदेश देकर नहीं आती की वो किसी विशेष क्षेत्र में आाने वाली है जो हमारी सरकार वहा प्रबंध कर लें वो तो कहीं भी किसी भी समय आ सकती है । जो जापान सरकार जानती है कि उसका देश भूकम्पों के मुहाने पर बैठा है उसने ऐसे मकान बनाए जिनसे भूकम्प का असर सबसे कम हो लेकिन इस बार के भूकम्प ने बावजूद सरकार व जनता की तैयारी के ऐसी तबाही मचा दी तो जरा सोचिए ऐसे देश में जहा लातूर जैसी घटनाओं के बाद भी कोई प्रबंध नहीं किये जाते वहा इस तरह की आने वाली आपदा से कितनी जनहानि हो सकती है कल्पना ही नहीं की जा सकती ।
    जापान की इस घटना ने वैज्ञानिक और टेक्नालाजी के क्षेत्र में काम करने वाले लोगो को एक बार फिर ये सोचने पर मजबूर कर दिया है कि परमाणु रिएक्टरों से विकास की दौड में हम ऐसी प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए कितना सुरक्षित बना रहे है एक तरफ विकास के नाम पर विश्व के सभी देश परमाणु रिएक्टरों की स्थापना करते जा रहे है लेकिन वे परमाणु रिएक्टर इस तरह की प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने के लिए कितने सुरक्षित है ये नही सोचा जा रहा । भारत में तो ऐसी किसी प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए र्कोइे प्रबंध शायद ही किसी परमाणु रिएक्टर में हो । भूकम्प का सामना ये रिएक्टर कितना कर पाऐगे शायद ही कोई जानता हो क्योंकि हम यह जान लेते है कि रिचर स्केल पर 9 की तीव्रता वाला भूकम्प भारत में तो नहीं आ सकता । लेकिन आपदा अपना माप बताकर नहीं आती ।
     इस जलजले ने कई सवाल खडे कर दिए है पूरे विश्व को परमाणु संयंत्र की स्थापना से पूर्व आने वाली सभी प्रकार की आपदओं का अधिकतम से अधिकतम आंकलन कर उसी अनुरूप् सुरक्षा उपाय करने होगे । जापान में यदि 10 में से 3 रिएक्टरों के भी रेडिएशन होता है तो जलजले व सुनामी से ज्यादा नुकसान इन रेडिएशेन से होना संभव है। ऐसा विकास क्या काम का जिससे जनहानि प्राकृतिक आपदा से भी ज्यादा हमारे विकास की अंधाधुध दोड के कारण हो । हालाकि वैज्ञानिक ये कह रहे है कि सुरक्षा प्रबंध पुख्ता है यदि ऐसा है तो फुफुशिमा व के आसपास के करीब साढे तीन लोगो को दूसरी सुरक्षित जगह पर जाने का क्यों कहा गया हैं ये इस बात की पुष्टि है कि स्वयं वैज्ञानिक भी आश्वत नहीं है कि इन रिएक्ब्टरों से जनहानि नहीं होगी । जापान की सरकार व जनता तो इतनी जागरूक है कवह अपने अतीत से सीख लेकर अपने भविष्य का महल उसी अनुरूप खडा करते है लेकिन हमारे भारतीय परिपेक्ष्य में न तो हमारी सरकार अपने अतीत से कोई सबक लेती है और न ही जनता इतनी जागरूक है कि अपने भविष्य का महल और सुरक्षित खडा कर सकें । यहा तो अतीत को भूलाकर उससे कोई सबक न लेकर उसी पुराने ढर्रै में अपना महल बनाने की एक बार फिर कोशिश की जाती है, चाहे उससे फिर कितना ही बडा नुकसान क्यों न हो जाए ।
     आज आवश्यकता जापान की आपदा से सबक लेकर हमें नए सिरे से सोचने की है कि यदि हमारे देश में होता है तो हम इसका मुकाबला करने के लिए कितने तैयार हैं

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